आगरा: केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिवक्ता अधिनियम संशोधन बिल को लेकर देश भर के अधिवक्ताओं में आक्रोश है। आगरा में भी अधिवक्ताओं ने इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन किया और इसे “काला कानून” करार दिया।
क्या है मामला?
केंद्र सरकार अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन करने जा रही है। अधिवक्ताओं का आरोप है कि यह संशोधन उनकी स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालेगा। इस बिल के प्रावधानों को लेकर अधिवक्ताओं में कई आशंकाएं हैं।
अधिवक्ताओं का विरोध
आगरा सेशन कोर्ट की अधिवक्ता सरोज यादव ने इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि यह बिल लोकतंत्र के निष्पक्ष और स्वतंत्र स्तंभ न्याय व्यवस्था को अपने चंगुल में लेने का षडयंत्र है। उन्होंने कहा कि सरकार अधिवक्ताओं को सुरक्षा देने के बजाय उनकी आवाज दबाना चाहती है।
बिल के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी
सरोज यादव ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि जिस तरह किसान विरोधी बिल वापस लेने पड़े थे, उसी तरह इस काले कानून को भी वापस लेना पड़ेगा। उन्होंने प्रदेश के वकीलों से 25 फरवरी को व्यापक पैमाने पर सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने का आह्वान किया है।
अधिवक्ताओं की चिंताएं
- स्वतंत्रता पर खतरा: अधिवक्ताओं का मानना है कि यह बिल उनकी स्वतंत्रता को खतरे में डालेगा और उन्हें सरकार के दबाव में काम करने के लिए मजबूर करेगा।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर खतरा: अधिवक्ताओं का यह भी मानना है कि यह बिल न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालेगा और सरकार को न्यायपालिका पर नियंत्रण करने की अनुमति देगा।
- काला कानून: अधिवक्ताओं ने इस बिल को “काला कानून” करार दिया है और इसे वापस लेने की मांग की है।
सरकार का पक्ष
सरकार का कहना है कि यह संशोधन अधिवक्ता अधिनियम में सुधार लाने और न्यायपालिका को अधिक कुशल बनाने के लिए किया जा रहा है। सरकार का यह भी कहना है कि यह संशोधन अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता को खतरे में नहीं डालेगा।
आगे क्या होगा?
अधिवक्ताओं ने 25 फरवरी को व्यापक पैमाने पर आंदोलन करने की चेतावनी दी है। यह देखना होगा कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।