ज्योतिषाचार्य राहुल भारद्वाज ने बताया की प्रदोष व्यापिनी कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। भविष्यपुराण का कथन है कि “प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा यथाक्रमम् । दीपवृक्षास्तथा कार्याः शक्त्यादेव गृहेषु च।।” विक्रम् संवत् 2081 में कार्तिक कृष्ण पक्ष में 31 अक्टूबर 2024 को चतुर्दशी अपराह्न 03:53 तक है, और इस दिन सूर्यास्त सायं 05:40 पर हुआ, जबकि 01 नवम्बर 2024 को अमावस्या सायं 06:17 तक है और इस दिन सूर्यास्त सायं 05:40 पर हुआ है अर्थात् इस वर्ष अमावस्या 31 अक्टूबर और 01 नवम्बर, दोनों दिन व्याप्त है। पहले दिन सम्पूर्ण प्रदोष काल में दूसरे दिन केवल 37 मिनट ही व्याप्त है। निर्णय सिन्धु प्रथम परिच्छेद के पृष्ठ 26 के अनुसार जब तिथि दो दिन कर्मकाल में विद्यमान हो तो निर्णय युग्मानुसार करें। इस हेतु अमावस्या प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है अर्थात् अमावस्या को प्रतिपदा युता ग्रहण महाफलदायी होता है और लिखा है कि उलटा होय (अर्थात् पहले दिन चतुर्दशी युता अमावस्या ग्रहण की जाये) तो महादोष होता है और पूर्व किये पुण्यों को नष्ट करता है। दीपावली निर्णय प्रकरण में धर्मसिन्धु में लेख है कि “तत्र सूर्योदयं व्याप्यास्तोत्तरं घटिकादि रात्रि व्यापिनी दर्श न सन्देहः” अर्थात् जहाँ सूर्योदय में व्याप्त होकर अस्तकाल के उपरान्त एक घटिका से अधिक व्याप्त होकर अमावस्या होवे, तब सन्देह नहीं है। वैदिक आचार्य राहुल भारद्वाज का कहना है की 01 नवम्बर 2024 के विषय में आचार्य राहुल भारद्वाज आगे लिखते है “तथा च परदिने एव दिनद्वये वा प्रदोषव्याप्तौ परा। पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजादौ पूर्वा, अभ्यंग स्नानादौ पदा, एवमुभयत्र प्रदोष व्याप्त्यभावेऽपि ।।
निर्णयसिन्धु के द्वितीय परिच्छेद के पृष्ठ 300 पर लेख है कि “दण्डैक रजनी योगे दर्शः स्यात्तु परेऽहवि।
तदा विहाये पूर्वेद्युः परेऽहनि सुखरात्रिकाः ।।” अर्थात् यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी होवे तो अगले
दिन ही करना चाहिए क्योंकि तिथि तत्त्व के अनुसार एक घड़ी रात्रि का योग होये तो अमावस्या दूसरे दिन होती है,
तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है। व्रतपर्व-विवेक के अनुसार “इयं प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या,
दिनद्वये सत्त्वाऽसत्त्वे परा” (तिथिनिर्णय) अर्थात् यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करें तो दूसरे
दिन ही लक्ष्मीपूजन करना चाहिए, इसमें यह अर्थ भी अन्तर्निहित है कि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श
करे तो लक्ष्मीपूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए।
इस प्रकार उपरोक्त सभी ग्रन्थों का सार यह है कि अमावस्या दूसरे दिन प्रदोषकाल में एक घटी से अधिक व्याप्त है तो प्रथम दिन प्रदोष में सम्पूर्ण व्याप्ति को छोड़कर दूसरे दिन प्रदोषकाल में महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए, किन्तु कहीं भी ऐसा लेख नहीं मिलता है कि दो दिन प्रदोष में व्याप्ति है तो अधिक व्याप्ति वाले प्रथम दिन लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
अतः उपरोक्त सभी तथ्यों का परिशीलन करने के उपरान्त यह निर्णय लिया जाना शास्त्र सम्मत है कि दूसरे दिन अर्थात् 01 नवम्बर 2024 को श्रीमहालक्ष्मी पूजन (दीपावली) किया जाना शास्त्र सम्मत है। इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त उपरान्त विद्यमान होने से अमावस्या साकल्यापादिता तिथि जो सम्पूर्ण रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक विद्यमान मानी जाकर सम्पूर्ण प्रदोषकाल, वृषलग्न, निशीथ में सिंहलग्न में लक्ष्मीपूजन के लिए प्रशस्त होगी।
शास्त्र सम्मत लक्ष्मीपूजन (दीपावली) 1 नवंबर 2024, शुक्रवार के दिन
राहुल भारद्वाज ने बताया की इस वर्ष (संवत् 2081) शक 1946 में 31 अक्टूबर 2024 के दिन चतुर्दशी समाप्ति 15.53 है। चतुर्दशी समाप्ति के बाद अमावस्या शुरु होकर दूसरे दिन 1 नवंबर शुक्रवार के दिन सायं 18.17 को अमावस्या समाप्ति हो रही है। 31 अक्टूबर को प्रदोषकाल में अमावस्याकी अधिकव्याप्ति है। और दूसरे दिन 1 नवंबर शुक्रवार के दिन प्रदोषकाल में अमावस्या अल्पकाल है, फिर भी 1 नवंबर को लक्ष्मीपूजन करना ही उचित है।
परदिने एव दिंद्वयेपि वा प्रदोषव्याप्तौ परा। पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा । (धर्मसिंधु) इयं प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या, दिंद्वये सत्त्वा ऽसत्त्वे परा। (तिथिनिर्णय)
यदा सायाह्मराभ्य प्रवृत्तोत्तरदिने किंचिन्युन्यामात्रयम् अमावस्या तदुत्तरदिने यामत्रायमिता प्रतिपत्तदाऽमावस्याप्रयुक्त
दीपदानलक्ष्मीपूजादिकं पूर्वत्र। यदा तु द्वितीयदिने यामत्रयेममावस्या तदुत्तरदिने सार्धयामात्रयं प्रतिपत्तदा परा। (पुरुषार्थ चिंतामणि) अर्थात तीन प्रहर के उपरान्त पर अंत हो रही हो और दूसरे दिन प्रतिपदा साढितीन प्रहर के उपरान्त पर अंत हो रही हो ऐसी स्थिति में लक्ष्मीपूजनादि करें।
धर्मसिंधु, पुरुषार्थ चिंतामणि, तिथिनिर्णय, व्रतपर्व विवेक आदि ग्रंथों में दिये हुए वचनों का विचार करके दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति कम या अधिक होनेपर दूसरे दिन अर्थात अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसंमत है। एक विशेष बिंदु यह भी है की जब प्रदोषकाल में अमावस्या अल्पकाल होती है तब उस दिन सायाहकाल और प्रदोषकाल इन दोनों कालों में
अमावस्या रहती है तथा अमावस्या और प्रतिपदा का युग्म होने से युग्म को महत्त्व देकर प्रतिपदायुक्त अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना चाहिए उपर्युक्त सभी वचनों पर विचार कर हमने 1 नवंबर 2024 शुक्रवार के दिन लक्ष्मीपूजन दिया। है। यद्यपि शुक्रवार के दिन सूर्यास्त के के प पश्चात् अमावस्या प्रदोष में अल्पकाल है, तथापि सायहकाल से प्रदोषकाल समाप्त होने तक अर्थात सूर्यास्त के बाद सामान्यतः 2 घंटे 24 मि. तक के कालावधी में लक्ष्मीपूजन कर सकते है। इस के पूर्व 28-10-1962, 17-10-1963 तथा 2-11-2013 इन तिथियों के दिन इसी प्रकार अमावस्या प्रदोष में अल्पकाल होनेपर अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन पंचांग में दिया था।
उपर्युक्त निर्दिष्ट ग्रंथों के वचनों का तथा पुराने पंचांगों में दिये हुए शास्त्रार्थ निर्णयों का विचार कर 1 नवंबर 2024 शुक्रवार के दिन दिया हुआ लक्ष्मीपूजन ही शास्त्रसंमत है।
आचार्य राहुल भारद्वाज