मुंबई : भारतीय रुपया आज अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है। 10 जनवरी, 2025 को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 85.97 रुपये के बराबर हो गई, जो भारतीय मुद्रा के लिए एक नया रिकॉर्ड है। इससे पहले, 9 जनवरी को भी रुपया अपने पिछले रिकॉर्ड से नीचे बंद हुआ था, जब एक डॉलर की कीमत 85.93 रुपये थी। यह लगातार तीसरा दिन है जब रुपया अपने पिछले निचले स्तर से नीचे गिरा है। इस गिरावट के साथ, रुपया अब लगातार दसवें हफ्ते भी कमजोरी का सामना कर रहा है।
रुपये की गिरावट का मुख्य कारण क्या है?
रुपये की गिरावट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख हैं डॉलर की मजबूती और कमजोर पूंजी प्रवाह (कैपिटल फ्लो)। डॉलर इंडेक्स वर्तमान में 109 के स्तर से ऊपर बना हुआ है, जो पिछले दो सालों के उच्चतम स्तर के पास है। अमेरिकी नॉन-फार्म पेरोल डेटा का बाजार में इंतजार है, जो फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना को प्रभावित कर सकता है।
इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्देशों के तहत, कुछ सरकारी बैंकों ने डॉलर की बिक्री की, जिससे रुपया थोड़ा स्थिर हुआ और गिरावट पर नियंत्रण पाया। हालांकि, डॉलर के मुकाबले रुपया की कमजोरी बरकरार रही और विशेषज्ञों का मानना है कि रुपया आगे भी दबाव का सामना कर सकता है।
आगे भी रुपये पर दबाव बना रहेगा: विशेषज्ञों का अनुमान
फाइनेंशियल एक्सप्रेस से बात करते हुए मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने बताया कि भविष्य में भी रुपये पर दबाव बना रह सकता है। उन्होंने कहा, “घरेलू बाजारों की कमजोर स्थिति, मजबूत डॉलर और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की लगातार निकासी रुपये पर निगेटिव प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में उछाल भी रुपये को और कमजोर कर सकते हैं।”
अनुज चौधरी ने आगे कहा कि वैश्विक स्तर पर बढ़ती अनिश्चितताओं और घरेलू कारणों के कारण भारतीय रुपया आने वाले समय में भी दबाव में रह सकता है।
आरबीआई के हस्तक्षेप से स्थिरता
डॉलर की मजबूती और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय रुपये पर भारी दबाव बना हुआ है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा किए गए नियमित हस्तक्षेप ने रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने में मदद की है। RBI ने कुछ सरकारी बैंकों के माध्यम से डॉलर की बिक्री की, जिससे रुपये को थोड़ी राहत मिली है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिकी डॉलर की मजबूती और विदेशी निवेशकों की निकासी की प्रवृत्ति जारी रहती है, तो रुपये की कमजोरी का सिलसिला जारी रह सकता है।
रुपये के कमजोर होने के प्रभाव
रुपये की गिरावट का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई क्षेत्रों में देखा जा सकता है:
- आयात महंगा होगा: रुपया कमजोर होने से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी, खासकर कच्चे तेल की कीमतें और अन्य आयातित वस्तुएं। इससे भारत के व्यापार घाटे पर और दबाव बढ़ेगा।
- महंगाई में इजाफा: रुपया कमजोर होने से आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी, जो महंगाई दर को बढ़ा सकती है। इससे आम जनता की जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- विदेशी निवेशकों की निकासी: जब रुपया कमजोर होता है, तो विदेशी निवेशकों के लिए भारत में निवेश करना महंगा हो सकता है। इससे पूंजी प्रवाह में कमी आ सकती है, जो भारतीय शेयर बाजार और वित्तीय क्षेत्र पर असर डाल सकता है।
रुपये की गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। डॉलर की मजबूती, कमजोर घरेलू बाजार और बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण रुपये पर दबाव बढ़ता जा रहा है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से कुछ राहत जरूर मिली है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में भी रुपये की कमजोरी जारी रह सकती है।