L&T चेयरमैन के बयान पर क्यों भड़कीं दीपिका पादुकोण, पढ़िए पूरा मामला

Manisha singh
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L&T चेयरमैन के बयान पर क्यों भड़कीं दीपिका पादुकोण, पढ़िए पूरा मामला

नई दिल्ली। हाल ही में एलएंडटी (L&T) कंपनी के चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन के एक बयान ने न केवल कर्मचारियों बल्कि आम लोगों का भी ध्यान खींचा है। सुब्रह्मण्यन ने दावा किया कि कर्मचारियों को हफ्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर जबरदस्त चर्चा का विषय बन गया और बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने भी इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की है।

एस एन सुब्रह्मण्यन का विवादित बयान

एस एन सुब्रह्मण्यन ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान यह दावा किया कि वह अपने कर्मचारियों से सप्ताह में 90 घंटे काम कराना चाहते हैं। उनका कहना था, “अगर मेरे कर्मचारी रविवार को भी काम करते तो मुझे काफी खुशी होती।” इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि खुद वह संडे के दिन भी काम करते हैं और कर्मचारियों से भी यही अपेक्षा रखते हैं। उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि “घर पर रहकर क्या करेंगे, पत्नी को कब तक घूरेंगे?”

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एस एन सुब्रह्मण्यन का यह बयान तब और भी हैरान करने वाला हो गया जब उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि कर्मचारियों को हफ्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए। यह बयान अब सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाओं का कारण बन चुका है।

दीपिका पादुकोण का प्रतिक्रिया

दीपिका पादुकोण, जो हमेशा अपने विचारों के लिए जानी जाती हैं, ने इस बयान के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरी पर इस बारे में पोस्ट किया और लिखा, “इतना बड़ा आदमी, जो इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठा है, उसका इस तरह का बयान देना काफी हैरान करने वाला है।” दीपिका ने अपने इस पोस्ट में एक हैशटैग भी जोड़ा है – #MentalHealthMatters (मेंटल हेल्थ महत्वपूर्ण है)। इससे साफ है कि दीपिका मेंटल हेल्थ के महत्व को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करना चाहती हैं, क्योंकि अत्यधिक काम का दबाव मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है।

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मेंटल हेल्थ की महत्वपूर्णता

दीपिका का यह पोस्ट मेंटल हेल्थ के महत्व पर जोर देता है, जो आजकल एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। लंबी और अत्यधिक कार्य घंटों के कारण कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। लंबे समय तक काम करने से तनाव, चिंता, अवसाद जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो लंबे समय में स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकती हैं।

पहले भी आए हैं ऐसे बयान

यह पहला मौका नहीं है जब किसी प्रमुख व्यक्ति ने कर्मचारियों से अधिक घंटे काम करने की बात की हो। इससे पहले, आईटी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने भी एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए। हालांकि, इस तरह के बयान अक्सर विवादों का कारण बनते हैं और कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।

कर्मचारियों के अधिकारों पर सवाल

इस तरह के बयान कर्मचारियों के अधिकारों और कार्य-जीवन संतुलन (work-life balance) पर सवाल उठाते हैं। कई विशेषज्ञों का मानना ​​है कि काम के घंटों का अत्यधिक विस्तार कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके बजाय, उन्हें समय पर विश्राम और पर्याप्त छुट्टियां मिलनी चाहिए ताकि वे अपनी कार्यक्षमता बनाए रख सकें।

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एस एन सुब्रह्मण्यन का बयान इस समय कई विवादों का कारण बना हुआ है, और दीपिका पादुकोण ने इसके खिलाफ अपनी राय व्यक्त की है। यह घटना इस बात को उजागर करती है कि काम के घंटे और कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करना और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना किसी भी संस्थान के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि काम की गुणवत्ता और उत्पादकता।

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