भारत में ऑनलाइन डिलीवरी सेवाओं की बढ़ती लोकप्रियता और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर विस्तृत लेख। ओला, जोमैटो, स्विगी के बाद अब सेक्स टॉयज, कंडोम जैसी निजी ज़रूरत की चीज़ों की होम डिलीवरी, और सिगरेट-दारू की डिलीवरी शुरू होने की संभावनाओं पर चर्चा। पारंपरिक बाजारों पर प्रभाव, गिग इकॉनमी का उदय, और भविष्य के परिदृश्य का विश्लेषण।
बृज खंडेलवाल
ऑनलाइन डिलीवरी सेवाओं ने आज हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। कभी भीड़ भरे बाज़ारों में घंटों बिताने वाले लोग अब घर बैठे ही अपनी ज़रूरत का हर सामान मंगा रहे हैं। ओला, जोमैटो, स्विगी के बाद अब ब्लिंकिट और इंस्टामार्ट जैसी सेवाओं ने तो कमाल ही कर दिया है। अब ये प्लेटफॉर्म सेक्स टॉयज, कंडोम और सैनिटरी नैपकिंस जैसी निजी ज़रूरत की चीज़ें भी बिना किसी झिझक के, वाजिब दामों पर घर तक पहुंचा रहे हैं। सीनियर सिटीजन से लेकर होम मेकर्स तक, हर कोई इस सुविधा का दीवाना हो गया है। अब बस लोगों को इंतज़ार है कि सिगरेट, पान और दारू जैसी चीज़ों की होम डिलीवरी कब शुरू होगी!
सीनियर सिटीजन पद्मिनी अय्यर बताती हैं कि कैसे पहले उन्हें बेलनगंज मार्केट में सब्जी-फल लाने में परेशानी होती थी, रिक्शा नहीं मिलता था और बंदरों का डर अलग था। लेकिन अब ब्लिंकिट जैसी सेवाओं ने उनकी ज़िंदगी आसान कर दी है। उन्हें सब कुछ घर बैठे, उसी दाम में और अच्छी क्वालिटी का मिल जाता है। कई बार तो डिलीवरी इतनी तेज़ होती है कि लगता है डिलीवरी बॉय गेट पर ही इंतज़ार कर रहा है।
होम मेकर्स अब घर के सदस्यों पर निर्भर नहीं हैं। ताज़े और ब्रांडेड प्रोडक्ट्स चुटकियों में घर पर सप्लाई हो रहे हैं। बिग बास्केट के डिलीवरी पार्टनर रोहित बताते हैं कि वे हर महीने अच्छी कमाई कर लेते हैं। अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में रहने वाले गुप्ताजी कहते हैं कि उनके यहाँ तो दिन भर डिलीवरी वालों का आना-जाना लगा रहता है, कभी फ्लिपकार्ट, कभी अमेजन, तो कभी ब्लिंकिट या जोमैटो वाला रात बारह बजे तक आता रहता है। भटनागर जी एक मज़ेदार किस्सा सुनाते हैं कि कैसे एक बार दिल्ली से देर शाम लौटने के बाद उन्होंने मूड बनने पर महसूस किया कि वे केमिस्ट की दुकान से कंडोम खरीदना भूल गए। थोड़ी निराशा हुई, लेकिन उनकी पत्नी ने तुरंत ब्लिंकिट से मंगाने का सुझाव दिया और उनका काम बन गया।
इस क्रांति का सबसे बड़ा फायदा है ट्रैफिक जाम, प्रदूषण और समय की बचत। लोग अब घर बैठे अपनी ज़रूरत की चीज़ें मंगा सकते हैं, जिससे सड़कों पर वाहनों का दबाव कम होता है। इसके अलावा, यह क्षेत्र कम पढ़े-लिखे युवाओं और लड़कियों के लिए अतिरिक्त आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है, जो डिलीवरी पार्टनर के रूप में पार्ट-टाइम काम करके अपनी जीविका चला रहे हैं।
नवीनतम रुझानों की बात करें, तो अब डिलीवरी सेवाएं केवल भोजन और किराने के सामान तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि दवाइयाँ, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य आवश्यक वस्तुएं भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं। ड्रोन डिलीवरी और इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग जैसी तकनीकें इस क्षेत्र को और अधिक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बना रही हैं। आने वाले समय में, हम इस क्षेत्र में और भी नवाचार और विकास देखने की उम्मीद कर सकते हैं।
भारत में होम डिलीवरी सर्विसेज और ऑनलाइन मार्केट्स ने पिछले एक दशक में उपभोक्ता व्यवहार और अर्थव्यवस्था को नया आकार दिया है। अमेजन, फ्लिपकार्ट, ब्लिंकिट, और इंस्टामार्ट जैसे प्लेटफॉर्म्स ने सब्जी, फल, दूध से लेकर सेक्स टॉयज और कंडोम तक, लगभग हर चीज को घर तक पहुंचा दिया है। शराब को छोड़कर, शायद ही कोई उत्पाद बचा हो जो ऑनलाइन उपलब्ध न हो। यह नई व्यवस्था सुविधा और गति का प्रतीक बन चुकी है, लेकिन इसके साथ ही पारंपरिक किराना दुकानों, कॉर्नर शॉप्स, और मंडी सिस्टम पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
होम डिलीवरी सर्विसेज का सबसे बड़ा लाभ है सुविधा। उपभोक्ता 24/7, कहीं से भी खरीदारी कर सकते हैं, जो व्यस्त जीवनशैली वालों के लिए वरदान है। विशेष रूप से सीनियर सिटीजन्स को घर बैठे आवश्यक वस्तुओं की डिलीवरी से बहुत राहत मिली है। ई-कॉमर्स की बदौलत उत्पादों की व्यापक रेंज उपलब्ध है, जो पारंपरिक दुकानों में संभव नहीं।
आर्थिक दृष्टिकोण से, इन सेवाओं ने गिग इकॉनमी को बढ़ावा दिया है। भारत में लगभग 10-12 करोड़ गिग वर्कर्स हैं, जो फूड डिलीवरी, ई-कॉमर्स, और लॉजिस्टिक्स से जुड़े हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक गिग वर्कर्स कुल श्रम बल का 4.1% (लगभग 23.5 करोड़) होंगे। ये प्लेटफॉर्म्स डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर उपभोक्ता व्यवहार को समझते हैं, जिससे बेहतर मार्केटिंग और मूल्य निर्धारण संभव होता है। जीएसटी संग्रह भी ऑल-टाइम हाई पर है, क्योंकि ऑनलाइन लेनदेन पारदर्शी हैं, जो सरकार के लिए फायदेमंद है।
हालांकि, यह व्यवस्था पारंपरिक किराना दुकानों और मंडी सिस्टम को ध्वस्त कर रही है। एक सर्वे के अनुसार, 46% शहरी उपभोक्ताओं ने किराना दुकानों से खरीदारी कम कर दी है, जिससे छोटे व्यापारियों को नुकसान और कर्मचारियों की छंटनी हुई है। मंडियों में भी किसानों को कम कीमत मिल रही है, क्योंकि बड़े प्लेटफॉर्म्स सीधे उत्पादकों से सौदा करते हैं। गिग वर्कर्स को भी चुनौतियां हैं—कम वेतन, सामाजिक सुरक्षा की कमी, और अनिश्चित कार्य घंटे।
सामाजिक स्तर पर, नौजवानों में आलस्य की शिकायत बढ़ रही है। त्वरित डिलीवरी की आदत ने लोगों को बाहर जाने और सामुदायिक संपर्क से दूर किया है। इसके अलावा, लुभावनी स्कीम्स जैसे भारी डिस्काउंट और कैशबैक उपभोक्ताओं को अनावश्यक खरीदारी के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे वित्तीय अनुशासन प्रभावित होता है।
ई-कॉमर्स सेक्टर ने भारत में 2024 में लगभग 15 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित किए। गिग वर्कर्स के अलावा, लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, और टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी नौकरियां बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, अमेजन और फ्लिपकार्ट ने लाखों MSMEs को अपने प्लेटफॉर्म्स से जोड़ा, जिससे छोटे व्यवसायों को वैश्विक पहुंच मिली। हालांकि, पारंपरिक रिटेल में रोजगार हानि इसकी एक कड़वी सच्चाई है।
लंबे समय में, यह व्यवस्था उपभोक्ता-केंद्रित अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगी, लेकिन छोटे व्यापारियों के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी। सरकार का रुख सकारात्मक है, क्योंकि जीएसटी और डिजिटल लेनदेन से राजस्व बढ़ रहा है। हालांकि, गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लागू करना जरूरी है, जैसा कि राजस्थान ने 2023 में शुरू किया।
2025 में पारंपरिक मार्केट्स दिक्कत में हैं, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होंगे। स्थानीय किराना दुकानें ताजा उत्पादों और व्यक्तिगत सेवा के दम पर टिक सकती हैं। भविष्य में, हाइब्रिड मॉडल्स (ऑनलाइन-ऑफलाइन एकीकरण) और स्मार्ट लॉजिस्टिक्स इस सेक्टर को और बदल सकते हैं।