Beyond the Boundaries: Embracing Self-Confidence and Self-Determination

Manisha singh
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आत्मविश्वास और आत्मनिर्णय: एक नई सोच की आवश्यकता

इस व्यवस्थित और बारीकी से भरी दुनिया में, हम अपने कार्यों को वही तरीके से पूरा करते हैं जैसा हमें बताया जाता है। इस प्रक्रिया में हमारे द्वारा कोई नवाचार नहीं किया जाता; इसके बजाय, हम जल्दबाजी में काम को यांत्रिक तरीके से पूरा करने की कोशिश करते हैं, जैसा हमारे अधीनस्थों या बॉस द्वारा निर्देशित किया गया है। Beyond the Boundaries: Embracing Self-Confidence and Self-Determination

इस नीरस और पैसे की मानसिकता वाली दुनिया में, अपनी पहचान बनाने की प्रक्रिया में व्यक्ति को कई परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। ये परिस्थितियाँ कभी आत्म-नियंत्रण के माध्यम से, तो कभी अपनी इच्छा के विरुद्ध आती हैं। व्यक्ति को अनगिनत कठिनाइयों और असंगत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस दुष्कर स्थिति में, अपनी पहचान बनाना और स्वार्थी दुनिया में जीना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

क्या आपने कभी सोचा है कि हम नए विचारों को अपने कार्यों में क्यों नहीं शामिल कर पाते? क्यों हमारे अंदर नवाचार की कमी होती है? क्यों हम दिए गए कार्य को एक अलग दृष्टिकोण से करने की कोशिश नहीं करते, जिससे हमारा काम नया और ताज़ा दिख सके?

इस संदर्भ में एक बड़ा सवाल उठता है: क्या हम अपने गुण और प्रतिभा से डरते हैं, या फिर आत्मविश्वास की कमी हमें नवाचार करने से रोकती है? यह जानना बहुत आवश्यक है कि हम क्यों अपनी वास्तविकता को छिपाते हैं और अपने कार्य को यांत्रिक और उत्साहहीन तरीके से क्यों पूरा करते हैं।

हमें अपने काम करने के लिए निर्धारित कृत्रिम नियमों और मानदंडों को क्यों नहीं तोड़ना चाहिए? क्यों न हम अपने तरीके, शैली और प्रक्रिया से काम करें? हमें एक ही पुरानी प्रणाली के अनुसार कार्य क्यों करना चाहिए? इसके अलावा, क्यों वही पुराने मानदंडों का उपयोग हमारे काम का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है?

हम निश्चित रूप से अपने दिए गए कार्य को अपनी बुद्धि और इच्छाओं के अनुसार बदल सकते हैं। यदि प्रस्तुति के दौरान कुछ कमी रह गई है, तो उसे अपने ज्ञान और कौशल के माध्यम से दूर किया जा सकता है। यहाँ ध्यान देने योग्य है कि ये उपाय कभी भी बदनाम करने वाले नहीं होने चाहिए।

यह सत्य है कि अलग और असामान्य तरीके से किया गया कार्य पहले दृष्टिकोण में सराहा नहीं जाता, और इसमें कई कमियाँ निकलती हैं, क्योंकि हम सामान्य तरीके से काम देखने के आदी होते हैं। लेकिन अगर हम दिए गए कार्य में प्रयोगात्मक नहीं होंगे, तो हमें नया और ताज़ा परिणाम कैसे मिलेगा?

कभी-कभी हमारा अंतिम परिणाम निर्धारित मानदंडों के अनुसार नहीं होता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने आप को ‘असफल’ या ‘हारने वाला’ मान लें और प्रयोग या नवाचार करना बंद कर दें। हमेशा प्रयोग के दौरान ‘असफलता’ को अंतिम परिणाम की ओर चढ़ने के लिए एक सीढ़ी के रूप में देखना चाहिए।

याद रखें, आत्म-विश्वास और आत्म-निर्णय मानव स्वभाव का एक आवश्यक और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। प्रयोग और असफलताएँ हमेशा ‘आविष्कारों’ की ओर ले जाती हैं। इसलिए जीवन में हमेशा साहसी रहें, निर्णयात्मक बनें और प्रयोगशील रहें। जीवन में निरंतर नवाचार करते रहें और अनुभव प्राप्त करें!

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Granddaughter of a Freedom Fighter, Kriya Yoga Practitioner, follow me on X @ManiYogini for Indic History and Political insights.
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