2025 में मानसून की जल्दी आमद, खेती-बाड़ी में फिर से जान आने की उम्मीद – जून के आखिर तक दिल्ली-एनसीआर में दस्तक देने की उम्मीद

Dharmender Singh Malik
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पूरा हिंदुस्तान आज उबाल पर है, कुछ राजनैतिक गर्मी, कुछ तापमान में, अप्रैल माह में, अप्रत्याशित उछाल! इस वक्त सबकी एक ही चिंता है, क्या अरब सागर से उठने वाला मानसून सही टाइम से भारत में एंट्री मारेगा ?

बृज खंडेलवाल 

साल 2025 हिंदुस्तान के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया है क्योंकि दक्षिण पश्चिमी मानसून के अपने वक़्त से पहले आने की संभावना प्रबल है, जिससे मुल्क भर में बहुत ज़रूरी राहत मिलने की उम्मीद है। भारतीय मौसम विभाग ने अपनी शुरुआती भविष्यवाणी जारी की है, जो ज़िंदगी बख्शने वाली बारिशों के सही वक़्त पर शुरू होने का इशारा देती है। उम्मीद है कि अंडमान और निकोबार (द्वीपों) में पहली बौछारें तकरीबन 10 मई (±2 दिन की गुंजाइश के साथ) तक पड़ जाएंगी। यह आम तौर पर होने वाली तारीख से लगभग दस दिन पहले है। इसके बाद, मानसून के केरल में 24 मई (±2 दिन की गुंजाइश के साथ) तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसकी आख़िरी मुमकिन तारीख 31 मई (±4 दिन की गुंजाइश के साथ) है, जो नॉर्मल की 1 जून की तारीख से एक हफ़्ता पहले शुरू होने का इशारा है।

मौसम की भविष्यवाणियों में मुल्क के अहम इलाकों में मानसून के आगे बढ़ने की तफ़सील भी दी गई है। मुंबई और पुणे में 8 जून से 11 जून के बीच बारिशें शुरू होने की उम्मीद है, जिसकी 92% मज़बूत (मजबूत) संभावना है। नेशनल कैपिटल रीजन, दिल्ली-एनसीआर में जून के आखिर तक पहली मानसूनी बारिशें होने का अंदाज़ा है, और पूरे हिंदुस्तानी सरज़मीन पर 15 जुलाई तक इसके फैलने की उम्मीद है।
कुल बारिश की मात्रा के लिहाज़ से, IMD ने जून से सितंबर तक के दौर के लिए लॉन्ग-टर्म एवरेज (LPA) यानी दीर्घकालिक औसत बारिश का 105% “औसत से ज़्यादा” मानसून रहने की भविष्यवाणी की है। इस (आशावादी) अनुमान) की पुष्टि), मामूली फ़र्क़ (अंतर) के साथ, निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट ने भी की है, जिसने LPA का तकरीबन 103% “मामूली (सामान्य)” मानसून रहने की उम्मीद ज़ाहिर की है।

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इस साल मानसून की जोग्राफियाई वितरण समान रहने की उम्मीद नहीं है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल और कर्नाटक के साहिली इलाकों जैसे राज्यों में मामूल से ज़्यादा बारिश होने का संभावना है। यह इन इलाकों के खेतिहर समुदायों और पानी के भंडारों के लिए बहुत अच्छा इशारा है। इसके बरअक्स , उत्तर पूर्वी हिंदुस्तान, लद्दाख का बुलंदी वाला इलाक़ा और तमिलनाडु में मामूल से कम बारिश होने की उम्मीद है। इसके लिए इन इलाकों के किसानों को पानी के बेहतर इंतज़ाम और फ़सल की एहतियाती मंसूबा बंदी करने की ज़रूरत होगी ताकि पानी की किल्लत से बचा जा सके।

2025 में मज़बूत और वक़्ती मानसून के लिए कई मौसमी कारण अनुकूल नज़र आ रहे हैं। एल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ENSO) फ़िलहाल न्यूट्रल मरहले (चरण) में है, जो तारीखी ऐतिहासिक तौर पर हिंदुस्तानी उपमहाद्वीप में सेहतमंद मानसूनी गतिविधि से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, बंगाल की खाड़ी में हल्के ला नीना जैसे हालात पैदा होने से कम दबाव वाले सिस्टम बनने की संभावना है, जो मानसूनी हवाओं को चलाने और बारिश बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं।

इस आशावादी परिदृश्य में इज़ाफ़ा करते हुए, जनवरी से मार्च के बीच यूरेशियाई इलाक़े में नॉर्मल से कम बर्फ़बारी हुई है। इसकी अहमियत इसलिए है क्योंकि इस इलाक़े में कम बर्फ़बारी का हिंदुस्तान में मज़बूत गर्मी के मानसून से ताल्लुक़ पाया गया है। इन मौसमी इशारों का आपसी तालमेल आने वाले बारिश के मौसम के लिए एक सुखद तस्वीर पेश करता है।

खेती-बाड़ी की तरक़्क़ी और विकास के लिए एक ज़रिया है मानसून जो जीवन जल की हैसियत रखता है, क्योंकि मुल्क की आधी से ज़्यादा खेती मौसमी बारिशों पर निर्भर है। चावल, गन्ना, कपास और दालों जैसी अहम फ़सलें वक़्ती और मुनासिब मानसूनी बारिश पर बहुत ज़्यादा आधारित होती हैं। 2025 में भरपूर मानसून से खेती की पैदावार में काफ़ी इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है, जिससे आमदनी बढ़ेगी और लाखों किसानों की ज़िंदगी बेहतर होगी। इसका बदले में फ़ास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG), ट्रैक्टरों की बिक्री और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री जैसे मुल्क की तरक़्क़ी में सीधे तौर पर सकारात्मक असर पड़ेगा।

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खेती-बाड़ी के अलावा, एक मज़बूत मानसून मुल्क के अहम पानी के ज़ख़ीरों को फिर से भर देगा, जिससे जलाशय और ज़मीन के अंदर पानी की सतह ऊपर आएगी। यह मुल्क के मुख्तलिफ़ हिस्सों में पानी की किल्लत को कम करने में अहम किरदार अदा करेगा, ख़ास तौर पर उन इलाकों में जो हाल के सालों में सूखे जैसे हालात से जूझ रहे हैं, जिससे खेती और घरेलू ज़रूरतों दोनों के लिए पानी की ज़्यादा सुरक्षा यक़ीनी होगी।

आशावादी भविष्यवाण के बावजूद, मौसम के विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में साइक्लोनिक सरगर्मी तेज़ होने जैसी अप्रत्याशित सूरतेहाल मानसून की मामूल की रफ़्तार में रुकावट डाल सकती हैं। इन मौसमी ख़राबीयों से कुछ इलाकों में तेज़ बारिश और सैलाब आ सकता है, और मानसून की रफ़्तार अस्थायी तौर पर कमज़ोर भी पड़ सकती है। IMD 15 मई को अपनी मुकम्मल और विस्तृत मानसून की भविष्यवाणी जारी करने वाला है, जो मौसम के ज़्यादा बारीक और व्यापक परिदृश्य को ज़ाहिर करेगा।
कुल मिलाकर, 2025 का मानसून हिंदुस्तान के लिए, ख़ास तौर पर इसके खेतिहर क्षेत्रों और पानी के ज़ख़ीरे के इंतज़ाम के लिए पॉजिटिव इशारे लेकर आया है।

जबकि मुल्क का बड़ा हिस्सा भरपूर बारिश मौसम की उम्मीद कर रहा है, उत्तर पूर्वी राज्यों और तमिलनाडु के किसानों को आगाह किया गया है कि वह कम बारिश के लिए तैयार रहें और अपनी फ़सलों की हिफ़ाज़त के लिए पानी देने की कारगर योजना बनाना पहले से कर लें। मुल्क बेसब्री से 2025 के मानसून के आने का इंतज़ार कर रहा है, जो तरक़्क़ी और राहत का पैग़ाम लेकर आ रहा है।

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मौसमी भविष्यवाणियां काफी सटीक होने लगी हैं फिर भी चुनौतियां बरकरार

पिछले एक दशक में भारतीय मानसून पूर्वानुमान की सटीकता में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने भविष्यवाणियों को और जटिल बना दिया है। 2014 से लेकर अब तक मौसम विभाग ने पूर्वानुमान के लिए डायनामिक और स्टैटिस्टिकल दोनों मॉडलों का सहारा लिया है। सुपरकंप्यूटिंग में प्रगति के चलते डायनामिक मॉडल अधिक सटीक हो गए हैं, जबकि स्टैटिस्टिकल मॉडल तेजी से बदलते मौसम में कम भरोसेमंद साबित हुए हैं।

2014-15 में IMD ने सामान्य मानसून का पूर्वानुमान दिया था, लेकिन एल नीनो के चलते कई हिस्सों में सूखा पड़ा। 2016 से 2018 के बीच पूर्वानुमान अपेक्षाकृत बेहतर रहे, हालांकि 2018 में कुछ अनपेक्षित वर्षा घाटा देखा गया। 2019 में भी वास्तविक बारिश क्षेत्रीय रूप से काफी भिन्न रही। 2020-2023 के दौरान मशीन लर्निंग और बेहतर डेटा तकनीकों ने पूर्वानुमानों को मजबूत किया, फिर भी मानसून की बढ़ती अनिश्चितता ने सटीकता को चुनौती दी। मौसम विभाग के अनुसार, हाल के वर्षों में मानसून पूर्वानुमानों की सटीकता लगभग 80% तक पहुंची है। ये राहत की बात है।

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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