नई दिल्ली:
1947 में भारत विभाजन हुआ। दो राष्ट्र — भारत और पाकिस्तान। लेकिन धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान से अलग, भारत में करोड़ों मुसलमान रुके रहे। सवाल उठता है: जब देश धर्म के आधार पर टूटा था, तो ये जनसंख्या क्यों रुकी रही? और इसका असर आज तक क्यों दिख रहा है?
नेहरू की गलती और सेकुलरिज्म का पाखंड:
पंडित नेहरू के नेतृत्व में उस समय भारत सरकार ने मुसलमानों को रोकने का निर्णय लिया — ताकि दुनिया में भारत सेकुलर दिख सके। लेकिन असल में यह वही समाज था, जिसने मुस्लिम लीग को वोट दिया था। वोटबैंक की इस राजनीति ने भारत के भीतर गहरी खाई खोद दी।
डॉ. आंबेडकर की चेतावनी को किया गया नजरअंदाज:
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि यदि पाकिस्तान बनता है, तो जनसंख्या का पूरी तरह आदान-प्रदान होना चाहिए। नहीं तो भविष्य में अलगाववाद और हिंसा जन्म लेगी। आज बंगाल, केरल, कश्मीर उसी असावधानी की कीमत चुका रहे हैं।
गजवा-ए-हिंद: सिर्फ ख्वाब नहीं, घोषित रणनीति:
गजवा-ए-हिंद कोई अफवाह नहीं, बल्कि कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा का हिस्सा है — जिसमें भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने का सपना पाला गया है। बंगाल से लेकर बिहार और कश्मीर तक, आए दिन हिंदुओं पर हो रहे हमले इसी मानसिकता की उपज हैं।
वक्फ बोर्ड और इस्लामी समानांतर सत्ता:
1995 के वक्फ अधिनियम ने भारत में एक समानांतर भूमि साम्राज्य खड़ा कर दिया। वक्फ बोर्ड को वह अधिकार दिए गए जो किसी और धार्मिक संस्था को नहीं मिले। लाखों एकड़ जमीन पर कब्जे आज भी जारी हैं, और न्यायपालिका तक इस पर मौन है।
बंगाल: गजवा-ए-हिंद की प्रयोगशाला:
बंगाल आज हिंदुओं के लिए नर्क बन चुका है। संदेशखाली, बशीरहाट, मुर्शिदाबाद जैसी जगहों पर हिंदू लड़कियों के साथ अत्याचार और हत्या की घटनाएँ आम हो गई हैं। ममता बनर्जी सरकार मौलवियों से शांति की भीख माँगती है, पर पीड़ित हिंदुओं से मिलने तक नहीं जाती।
RSS और ज़मीन पर संघर्ष:
जब राजनीतिक दल तुष्टिकरण में व्यस्त हैं, तब भी आरएसएस का कार्यकर्ता कश्मीर, कोकराझार, गोवा और बंगाल में जमीन पर सेवा कर रहा है। राष्ट्रवादी विचारधारा के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाया जाता है, लेकिन संघ का कार्यकर्ता आज भी अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के साथ खड़ा है।
हिंदू कब तक भागेगा?
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, कश्मीर — हर जगह से हिंदू विस्थापित हुआ। अब बंगाल से भी? यह प्रश्न हर जागरूक भारतीय को झकझोरता है। अब समय आ गया है कि हिंदू समाज बोले — “मैं यहीं का हूं, यहीं लड़कर रहूंगा।”
समाधान क्या है?
भारत को नकली सेकुलरिज्म से बाहर आकर एक न्यायप्रिय राष्ट्र बनना होगा। समान नागरिक संहिता लागू करनी होगी। वक्फ बोर्ड जैसे समानांतर साम्राज्यों को समाप्त करना होगा। और सबसे महत्वपूर्ण — गजवा-ए-हिंद जैसी सोच का खुलकर, निर्भीक होकर विरोध करना होगा।
निष्कर्ष:
1947 का अधूरा काम अब 2025 में पूरा होना चाहिए — जब भारत बिना किसी संकोच के अपने सनातन स्वभाव पर गर्व कर सके। विभाजन की चिंगारी आज ज्वाला बन रही है। अब निर्णय हमारा है: संधि होगी या महाभारत?