आधुनिकता की आंधी में रिश्तों का जनाज़ा: आजकल के युवा पति, ब्लू प्लास्टिक ड्रम और सीमेंट के कट्टों से डरते हैं, जैसे ये कोई जानलेवा संकेत बन गए हों। वहीं, संयुक्त परिवारों की बुजुर्ग सासें अब शादी के बर्तन नहीं, ‘कटोरे’ इस डर से खरीद रही हैं कि बहू अब केवल रसोई तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसके इरादे कहीं और हैं।
भारतीय समाज में महिला सशक्तिकरण की लहर ने निश्चित रूप से उन्हें शिक्षा, रोजगार और निर्णय लेने की आजादी दी है, लेकिन इसके पीछे एक स्याह परछाई भी है—बिखरते रिश्ते, अवैध संबंध, और प्रेम के नाम पर की जा रही हत्याएं।
रूह कंपा देने वाली ताजा घटनाएं
इन दिनों देशभर से ऐसी खबरें आ रही हैं जो रिश्तों के बदलते भयावह स्वरूप को दर्शाती हैं:
- आगरा: 40 वर्षीय एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी, क्योंकि पति ने उन्हें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था।
- लखनऊ: 25 वर्षीय एक महिला ने शिकायत की कि उसका पति उसे कभी बाहर नहीं ले गया, न ही उसकी इच्छाओं को समझा। उसने प्रेमी संग मिलकर पति की हत्या कर डाली।
- बलिया: एक पूर्व सैनिक के शव को छह टुकड़ों में काट कर अलग-अलग जगह फेंका गया—और इस जघन्य वारदात के कातिल कोई और नहीं, उसकी पत्नी और उसका प्रेमी थे।
- कानपुर: एक महिला ने अपने भतीजे के साथ पति की हत्या की और पड़ोसियों को फंसाने की कोशिश की।
- औरैया: शादी के महज 15 दिन बाद ही एक महिला ने कॉन्ट्रैक्ट किलर को 2 लाख रुपये देकर पति को मरवा दिया, क्योंकि वह प्रेमी के साथ “नई जिंदगी” शुरू करना चाहती थी।
जब बच्चे बनें रुकावट
इन भयानक कहानियों में बच्चे भी शिकार बन रहे हैं:
- तेलंगाना: तीन बच्चों की मां ने अपने प्रेमी के कहने पर उन्हें मार डाला, ताकि वह ‘सिंगल’ होकर शादी कर सके।
- पश्चिम बंगाल: एक महिला ने 10 साल के बेटे की हत्या कर दी क्योंकि उसे डर था कि बेटा उसके समलैंगिक संबंध को उजागर कर देगा।
- गुरुग्राम: 8 वर्षीय बेटे की हत्या का कारण वही था—प्रेमी और ‘नई शुरुआत’ की चाहत।
- यूपी: महज तीन साल की बेटी को सूटकेस में भरकर मार डाला गया—क्योंकि प्रेमी को बच्चे पसंद नहीं थे।
इन सभी मामलों में एक समानता है—रिश्ते अब समझौते और परंपराओं पर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत इच्छाओं और ‘इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन’ पर टिके हैं।
सवाल यह है: क्या हम महिला सशक्तिकरण के नाम पर रिश्तों की कब्रें बना रहे हैं?
आज की औरतें पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनी हैं। 2023 तक, 49% महिलाएं किसी न किसी रूप में कार्यरत थीं। उनकी आर्थिक आज़ादी ने उन्हें आत्मविश्वास तो दिया, लेकिन यह बदलाव पारिवारिक ताने-बाने के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
सोशल मीडिया—नई मोहब्बत का पुराना जाल
इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे मंच अब सिर्फ टाइमपास नहीं, बल्कि नए और अक्सर विवाहेतर रिश्तों की जमीन बन गए हैं। 2024 के एक अध्ययन के अनुसार, 70% लोग सोशल मीडिया पर रोजाना एक्टिव रहते हैं। उनमें से बड़ी संख्या में लोग भावनात्मक सहारा इन्हीं डिजिटल रिश्तों में तलाशते हैं। कई महिलाएं ‘Unhappy Marriages’ से भागने के लिए इसी राह को अपनाती हैं। लेकिन जब ये ‘डिजिटल मोहब्बतें’ हकीकत में किसी बाधा से टकराती हैं—चाहे वह पति, बच्चे या परिवार की शक्ल में हो—तो मामला अक्सर कत्ल, साजिश और हाई-वोल्टेज ड्रामा तक जा पहुंचता है।
बदलते सामाजिक मूल्य—आशीर्वाद या अभिशाप?
कुछ लोग इस बदलाव को ‘पुराने मूल्यों का पतन’ मानते हैं। “पहले बहू शादी को धर्म समझती थी, अब वह खुद को CEO समझती है,”—ऐसी बातें सुनना अब आम हो गया है। एक सर्वे के अनुसार, 2023 में 30% महिलाओं ने घरेलू हिंसा की शिकायत की थी—इससे यह भी स्पष्ट है कि सभी रिश्ते परफेक्ट नहीं होते। लेकिन सवाल यह है कि क्या रिश्ते सुधारने की बजाय उन्हें खत्म कर देना ही एकमात्र विकल्प है? क्या प्रेम के नाम पर हत्या एक नई सामाजिक स्वीकृति बन रही है?
संयुक्त परिवार और बुजुर्ग—इस नई दुनिया में अक्सर ‘अनफिट’ महसूस कर रहे हैं। सास-ससुर जो कभी परिवार के स्तंभ माने जाते थे, अब बहुओं की नजर में अक्सर ‘बाधाएं’ बनते जा रहे हैं। बुजुर्गों को इन तीव्र परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बिठाना कठिन लग रहा है।
कानून और समाज—अब क्या करे?
ये घटनाएं केवल ‘क्राइम स्टोरीज़’ नहीं हैं। ये हमारे समाज के लिए गंभीर चेतावनी हैं। कानून तो अपना काम करेगा, लेकिन समाज को भी अब यह सोचना होगा कि आर्थिक आजादी और आधुनिकता के बीच नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों को कैसे बचाया जाए।
महिला सशक्तिकरण जरूरी है—उसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन सशक्त होना जिम्मेदारी के साथ आता है। यदि आज की महिला खुद के फैसले लेने में सक्षम है, तो उसे रिश्तों की गरिमा और पवित्रता को भी समझना होगा।
वरना, अगली बार किसी पति का शव फिर प्लास्टिक के ड्रम में मिले तो चौंकिए मत—ये आज की ‘आज़ाद मोहब्बत’ की नई और भयावह कीमत है।