Lohri 2025: लोहड़ी की अग्नि का माता सती से गहरा नाता, जानिए पौराणिक कथा और इस त्योहार का महत्व

लोहड़ी की आग में समाहित है माता सती का आशीर्वाद, जानिए इस पर्व की पौराणिक कथा और महत्व!

Manisha singh
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Lohri 2025: लोहड़ी की अग्नि का माता सती से गहरा नाता, जानिए पौराणिक कथा और इस त्योहार का महत्व

Lohri 2025: लोहड़ी, उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो खासकर पंजाब में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार सर्दियों के अंत और रबी की फसल की कटाई का प्रतीक होता है। लोहड़ी का पर्व हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में भी मनाया जाता है, लेकिन पंजाब में इसका महत्व और रंग सबसे खास होते हैं।

Lohri 2025: : कब है और कैसे मनाया जाएगा?

लोहड़ी का पर्व हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस साल लोहड़ी 13 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी, जबकि मकर संक्रांति 14 जनवरी को है। लोहड़ी की प्रमुख विशेषता है लकड़ियों के ढेर पर सूखे उपले रखकर आग जलाना। फिर लोग इस अग्नि की पूजा करते हैं और इसके चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसके बाद, लोग आग में मूंगफली, रेवड़ी, तिल, गुण और अन्य प्रसाद डालते हैं। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से लोहड़ी के लोक गीत गाती हैं और बच्चे, महिलाएं और पुरुष नाचते गाते हैं, जो इस त्योहार को और भी खास बनाता है।

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माता सती से है लोहड़ी की अग्नि का नाता

लोहड़ी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन इनमें से एक कथा विशेष रूप से माता सती से जुड़ी हुई है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था, लेकिन अपनी पुत्री सती और उनके पति भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया।

सती, अपने पिता के महायज्ञ में शामिल होने के लिए बहुत उत्सुक थीं। भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दी। जब सती यज्ञ स्थल पर पहुंची, तो उन्होंने देखा कि वहां भगवान शिव का कोई स्थान नहीं था। इस अपमान से दुखी होकर, सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इस घटना को लेकर मान्यता है कि लोहड़ी की अग्नि को माता सती को समर्पित किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और अग्नि में श्रद्धापूर्वक प्रसाद अर्पित किया जाता है।

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लोहड़ी का नामकरण कैसे हुआ?

लोहड़ी का नामकरण एक दिलचस्प प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। यह पर्व पौष महीने के आखिरी दिन मनाया जाता है, और इस दिन के बाद धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होती जाती हैं। फसलों के लिए मौसम अनुकूल होने लगता है, और किसान अपनी कड़ी मेहनत के बाद अच्छी फसल की उम्मीद करने लगते हैं।

लोहड़ी नाम की उत्पत्ति कुछ इस तरह से हुई है:

  • ‘ल’ से लकड़ी,
  • ‘ओ’ से जलते सूखे उपले,
  • और ‘डी’ से रेवड़ी।

इस तरह लोहड़ी का नामकरण इन विशेष तत्वों के आधार पर हुआ है, जो इस पर्व की विशेषता के रूप में जुड़े हुए हैं।

लोहड़ी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

लोहड़ी का पर्व न केवल कृषि पर आधारित है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है, जो अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा करते हैं। इसके साथ ही यह दिन देवताओं की आराधना, तिल और रेवड़ी के माध्यम से समाज में खुशी और समृद्धि का संदेश देता है। लोहड़ी के दिन अग्नि की पूजा करने से व्यक्ति के घर में समृद्धि और शांति आती है, और बुरी ऊर्जा दूर होती है।

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लोहड़ी का पर्व भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है, जो हमें अपने पारंपरिक मूल्यों से जोड़ता है और साथ ही प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व न केवल कृषि प्रधान समाज के लिए एक खुशी का अवसर है, बल्कि यह हमें सर्दी से गर्मी की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा भी देता है। लोहड़ी की आग के चारों ओर घूमते हुए, हम न केवल अपनी कड़ी मेहनत की सराहना करते हैं, बल्कि हम यह भी मानते हैं कि हर कठिनाई के बाद सुख और समृद्धि की सुबह होती है।

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Manisha Singh is a freelancer, content writer,Yoga Practitioner, part time working with AgraBharat.
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