जीवनसाथी को खोने का सबसे ज्यादा दुःख पुरुषों को, 70 प्रतिशत बढ़ जाता है मौत का जोखिम

Dharmender Singh Malik
2 Min Read

जीवनसाथी को खोने से पुरुषों के एक साल के भीतर मरने की आशंका 70प्रतिशत अधिक हो जाती है। फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में पाया गया है कि जीवनसाथी को खोने का दुःख सबसे ज्यादा पुरुषों पर असर डालता है। स्टडी में शोधकर्ताओं ने डेनमार्क, यूके और सिंगापुर के 65 और उससे अधिक उम्र के लगभग दस लाख डेनिश नागरिकों के डेटा का अध्ययन किया है।

जानकारी के मुताबिक अध्ययन में पाया गया कि कम उम्र के लोग जब अपने जीवनसाथी को खो देते थे, तो एक साल के भीतर उनके मरने की आशंका अधिक हो जाती है।कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जीवनसाथी को खोने के बाद के वर्ष में, पुरुषों की मृत्यु होने की आशंका 70प्रतिशत अधिक थी, जबकि महिलाओं में मृत्यु की आशंका 27 प्रतिशत अधिक थी।

See also  क्या आप पेट की चर्बी को अलविदा कहना चाहते हैं? तो अभी से अपने नाश्ते में शामिल करें ये 10 चीजें, रिजल्ट देखकर रह जाएंगे हैरान! – WEIGHT LOSS BREAKFAST

एजिंग रिसर्च के सह-निदेशक डॉन कैर कहते हैं, सामान्य रूप से वृद्धावस्था का अर्थ मृत्यु का उच्च जोखिम है, और कपल अक्सर अपने जीवन शैली की आदतों और अन्य व्यवहारों को साझा करते हैं जो स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाते हैं, जैसे आहार और व्यायाम।इन सभी से उनके जीवित रहने की संभावना ज्यादा रहती है, लेकिन जैसे ही वह बिछड़ जाते हैं उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है.आश्चर्य की बात यह थी कि अध्ययन में युवा पुरुषों को जीवनसाथी की हानि से महिलाओं की तुलना में अधिक कठिन लग रहा था।

अध्ययन में जीवनसाथी को खोने से पहले और बाद में लोगों के स्वास्थ्य देखभाल के खर्चों पर डेटा भी शामिल था।ऐसे समय में लोगों को डिप्रेशन से जूझना पड़ता है। खाने-पीने में कमी के कारण कमजोरी जैसी स्थिति होने लगती है, जिससे तरह-तरह की बीमारियां साथ पकड़ने लगती है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल का खर्च भी बढ़ने लगता है। जीवनसाथी खोने के दुःख से कम उम्र के पुरुषों में तीन साल तक मृत्यु का जोखिम बढ़ सकता है।रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी उम्र के पुरुषों में मृत्यु दर में वृद्धि जोखिम है। वृद्धावस्था में अकेलापन मौत का बड़ा कारण है।

See also  Diwali 2024: दीपावली की तारीख पर विवाद गहराया, काशी विद्वत परिषद ने दी शास्त्रार्थ की चुनौती
Share This Article
Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
Leave a comment