सनसनीखेज खुलासा: याददाश्त सिर्फ दिमाग में नहीं, शरीर की हर कोशिका में होती है!

Manasvi Chaudhary
4 Min Read
सनसनीखेज खुलासा: याददाश्त सिर्फ दिमाग में नहीं, शरीर की हर कोशिका में होती है!

न्यू यॉर्क/नई दिल्ली। लंबे समय से माना जाता रहा है कि याददाश्त (Memory) का केंद्र सिर्फ हमारा मस्तिष्क (Brain) ही होता है, लेकिन एक नई और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज ने इस धारणा को चुनौती दी है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी (NYU) के डॉ. निकोलाय कुकुश्किन के नेतृत्व में किए गए एक शोध में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि शरीर की गैर-तंत्रिका कोशिकाएं (non-neural cells)—जैसे कि किडनी की कोशिकाएं और अन्य तंत्रिका ऊतकों की कोशिकाएं—भी याददाश्त जैसा कार्य करने में सक्षम हैं।

डॉ. कुकुश्किन की यह क्रांतिकारी स्टडी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन (Nature Communication) में प्रकाशित हुई है।

 

‘मेमोरी जीन’ और गैर-तंत्रिका कोशिकाएं

 

शोध में पाया गया कि जब इन गैर-तंत्रिका कोशिकाओं को अलग-अलग रासायनिक संकेत (chemical signals) दिए जाते हैं, तो वे न्यूरॉन्स (Neurons) की तरह ही प्रतिक्रिया करती हैं। ये कोशिकाएं एक विशेष “याददाश्त जीन” (Memory Gene) को सक्रिय कर देती हैं।

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डॉ. कुकुश्किन की यह खोज हमें बताती है कि याददाश्त की क्षमता केवल मस्तिष्क तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर की सभी कोशिकाओं में हो सकती है। यह तथ्य जीव विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।

 

अंतराल में जानकारी देने का ‘मासिव-स्पेस्ड इफेक्ट’

 

रिसर्च में एक और महत्वपूर्ण बिंदु सामने आया है, जो सीखने और याद रखने की प्रक्रिया से जुड़ा है। यह प्रक्रिया ‘मासिव-स्पेस्ड इफेक्ट’ (Massive-Spaced Effect) कहलाती है। इसके अनुसार, किसी भी जानकारी को लगातार एक बार में देने की बजाय, यदि उसे कुछ समय के अंतराल पर दिया जाए, तो उसे बेहतर और लंबे समय तक याद रखा जा सकता है।

पहले यह प्रभाव सिर्फ न्यूरॉन्स से जुड़ा माना जाता था, लेकिन अब इस अध्ययन ने साबित कर दिया है कि यह प्रभाव गैर-तंत्रिका कोशिकाओं में भी देखा जा सकता है।

  • NYU के अध्ययन में पाया गया कि जिन कोशिकाओं को थोड़े समय के अंतराल पर संकेत दिए गए, उनमें लंबे समय तक याद रखने की क्षमता (Longer memory retention) विकसित हुई।
  • इसके विपरीत, जिन कोशिकाओं को केवल एक बार संकेत मिला, उनकी याददाश्त क्षमता इतनी मजबूत नहीं थी।
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‘रिपोर्टर जीन’ से याददाश्त का परीक्षण

 

शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के बाहर की कोशिकाओं की याददाश्त क्षमता का परीक्षण करने के लिए एक विशेष तरीका अपनाया।

  1. उन्होंने इन कोशिकाओं में एक ‘रिपोर्टर’ जीन डाला।
  2. यह रिपोर्टर जीन उस समय चमकता (Fluoresces) है जब ‘याददाश्त जीन’ सक्रिय होता है।
  3. इस प्रक्रिया से कोशिकाओं की याददाश्त प्रतिक्रियाओं की वास्तविक समय में (Real-time) ट्रैकिंग की गई।

परीक्षण के परिणामों ने स्पष्ट किया कि अंतराल पर संकेत प्राप्त करने वाली कोशिकाओं में ‘याददाश्त जीन’ मजबूत और लंबे समय तक सक्रिय रहा। इससे यह सिद्ध होता है कि संकेत दिए जाने का सही समय (Timing of the signal) याददाश्त के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

 

भविष्य पर प्रभाव

 

यह स्टडी न केवल याददाश्त की हमारी समझ को विस्तृत करती है, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं:

  • अल्ज़ाइमर और याददाश्त संबंधी रोग: यह नया ज्ञान अल्ज़ाइमर रोग (Alzheimer’s disease) जैसी याददाश्त संबंधी बीमारियों के इलाज के तरीकों को प्रभावित कर सकता है। अगर शरीर की अन्य कोशिकाएं भी याददाश्त में भूमिका निभाती हैं, तो उपचार के नए रास्ते खुल सकते हैं।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण: चूंकि यह स्पष्ट हो गया है कि थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर संकेत देने से याददाश्त क्षमता मजबूत होती है, इसलिए इस सिद्धांत का उपयोग शिक्षा के तरीकों और प्रशिक्षण प्रणालियों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए किया जा सकता है।
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यह खोज न्यूरोसाइंस (तंत्रिका विज्ञान) की सीमाओं से परे जाकर जीव विज्ञान के अध्ययन का एक नया अध्याय शुरू करती है।

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