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AGRA BHARAT > लाइफस्टाइल > सोशल मीडिया अखबारों के लिए बना चुनौतीपूर्ण सिरदर्द
लाइफस्टाइल

सोशल मीडिया अखबारों के लिए बना चुनौतीपूर्ण सिरदर्द

Dharmender Singh Malik
Last updated: 2024/10/18 at 1:51 PM
Dharmender Singh Malik
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ब्रज खंडेलवाल
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक) 

सिर्फ एक मोबाइल फोन और इंटरनेट कनेक्शन की जरूरत है, और आपके हाथ में है अलादीन का चिराग या बंदर के हाथ में उस्तरा! यूट्यूब चैनल, मीम्स, फेसबुक पोस्ट, रील्स, ट्वीट्स, डेटिंग साइट्स और अन्य ऐप्स के उदय ने संचार और सूचना के प्रसार के तरीके को मौलिक रूप से बदल दिया है।

आज आम नागरिक सशक्त हो गए हैं; वे खुद निर्माता, रिपोर्टर, प्रकाशक और प्रसारक बन गए हैं। पीड़ित भी अब अपनी आवाज उठा सकते हैं। जनसंचार विशेषज्ञों का कहना है, “अब हमारे पास अधिक समान अवसर हैं।” वरिष्ठ पत्रकार विष्णु शर्मा के अनुसार, “इस किफायती और आकर्षक तकनीक ने ‘दबंग सत्ताधारी वर्ग’ द्वारा शक्ति के दुरुपयोग पर लगाम लगाई है।”

सोशल मीडिया कार्यकर्ता पारस नाथ चौधरी कहते हैं, “इस युग में जब ध्यान की अवधि घट रही है, ये प्लेटफॉर्म न केवल लोकप्रिय हो रहे हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल, किफायती और त्वरित भी साबित हो रहे हैं। वे वास्तविक समय में संवाद की सुविधा देते हैं और मुक्त अभिव्यक्ति के लिए शक्तिशाली उपकरण बन चुके हैं।”

मुख्यधारा के अखबार अब विभिन्न दबावों का सामना कर रहे हैं और उनकी प्रासंगिकता संकट में है। कई अखबारों के अपने सोशल मीडिया हैंडल और व्हाट्सएप ग्रुप हैं, जिनकी व्यापक पहुँच है, जैसा कि सीनियर मीडिया पर्सन पीयूष पांडे बताते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर का कहना है, “अब राष्ट्रीय मीडिया को सूचना का एकमात्र द्वारपाल नहीं माना जा सकता। लोग वैकल्पिक मीडिया की ओर रुख कर रहे हैं। पारंपरिक मॉडल अब पुराना हो गया है।”

बजाय सूचना देने के, कई समाचार पत्र अब विज्ञापनों के साधन बन गए हैं। मुक्ता गुप्ता, सोशल एक्टिविस्ट और इन्फ्लूएंसर, कहती हैं, “जब समाचार पत्र फैंसी कारों और महंगे कपड़ों के विज्ञापनों से भरे होते हैं, तो आम नागरिक खुद को अलग महसूस करते हैं।”

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाते हैं और उन्हें आवाज देते हैं, जिनका पारंपरिक मीडिया में हाशिए पर रखा गया था। वरिष्ठ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कर्मी दीपक पालीवाल के अनुसार, “आज हम छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों से व्यापक कवरेज देख रहे हैं।”

सोशल मीडिया पर सामग्री निर्माण में महिलाओं की भागीदारी ने मीडिया की छवि को भी बदल दिया है। प्रभावशाली लोग और सामग्री निर्माता उत्पादों की समीक्षा करते हैं, जिससे मुख्यधारा के मीडिया में पूर्वाग्रह को कम करने में मदद मिलती है।

हालांकि, यह शक्ति चुनौतियों के साथ आती है, जैसे कि गलत सूचना का प्रसार। हमें सोशल मीडिया को न केवल समाचार के स्रोत के रूप में, बल्कि विचारों के आदान-प्रदान के प्लेटफार्म के रूप में भी देखना होगा।

पारंपरिक मीडिया के व्यवसाय मॉडल को चुनौती देने का समय आ गया है। यदि विज्ञापनदाता समाचार पत्रों में कथानक को निर्देशित करते रहेंगे, तो उन्हें अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना होगा। मुख्यधारा का मीडिया अब सोशल मीडिया से प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहा, बल्कि तालमेल बैठा रहा है।

हमारी खोज में एक अधिक सूचित समाज की ओर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का समर्थन आवश्यक है। ये प्लेटफॉर्म जुड़ाव के लिए रास्ता प्रदान करते हैं, वास्तविक समय के मुद्दों को संबोधित करते हैं, और मुख्यधारा के मीडिया में अनसुनी आवाजों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

 

 

 

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TAGGED: डिजिटल पत्रकारिता, पत्रकारिता में बदलाव, मुख्यधारा का मीडिया, वैकल्पिक मीडिया, सशक्त नागरिक, सिटीजन रिपोर्टर, सूचना का लोकतंत्रीकरण, सूचना के अधिकार, सोशल मीडिया और अखबार, सोशल मीडिया चुनौती
Dharmender Singh Malik October 18, 2024 October 18, 2024
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By Dharmender Singh Malik
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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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