टेसू-झांझी की लोक परंपरा: आधुनिकता के दौर में लुप्त होती संस्कृति

Honey Chahar
2 Min Read

टेसू-झांझी की लोक परंपरा जो कभी बृजभूमि की शान हुआ करती थी, आज आधुनिकता के दौर में विलुप्त होने के कगार पर है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे यह खूबसूरत परंपरा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है और इसे बचाने के लिए क्या किया जा सकता है।

आगरा: रावण दहन के साथ ही घर-घर टेसू-झांझी के पूजन का दौर शुरू हो जाता है। लेकिन आजकल यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। मोबाइल और लैपटॉप के इस युग में बच्चे अब टेसू-झांझी के खेल में उतना रुचि नहीं लेते हैं।

See also  बच्चे को टीवी से रखें दूर! टीवी प्रोग्राम हो सही; देखने की समय सीमा, हमेशा बच्चे के साथ बैठें; और क्या क्या करें ...

टेसू-झांझी: एक खूबसूरत परंपरा

टेसू-झांझी की परंपरा बृजभूमि से निकलकर पूरे देश में फैली थी। दशहरा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले इस उत्सव में बच्चे टेसू और झांझी की मूर्तियां बनाकर घर-घर घूमते थे और गीत गाकर चंदा मांगते थे। यह परंपरा महाभारत के बर्बरीक के किरदार से जुड़ी हुई है।

आधुनिकता के सामने चुनौतियां

बदलते समय के साथ टेसू-झांझी की परंपरा भी प्रभावित हुई है। आज के बच्चों के पास मोबाइल और वीडियो गेम जैसे कई विकल्प हैं। ऐसे में वे पारंपरिक खेलों में कम रुचि लेते हैं। इसके अलावा, बढ़ती हुई शहरीकरण और बदलती जीवनशैली ने भी इस परंपरा को प्रभावित किया है।

See also  From Nurturers to Perpetrators: The Changing Role of Women in Society and the Need for a Conscious Planet

परंपरा को बचाने की जरूरत

टेसू-झांझी की परंपरा हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। इसे बचाने के लिए हमें सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। स्कूलों में बच्चों को इस परंपरा के बारे में बताया जाना चाहिए। साथ ही, सरकार को भी इस परंपरा को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए।

See also  क्या भारत के अधिकांश एमपी, एमएलए या पार्षदों को लोकतांत्रिक प्रणाली में प्रशिक्षण लेने की जरूरत है?
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement