बृज खंडेलवाल
ब्रज मंडल, जहाँ श्री कृष्ण की बांसुरी के मधुर सुर गूंजते थे, आज केवल शोर और कोलाहल से भरा हुआ है। यमुना नदी की स्थिति दयनीय है, जबकि बाग-बगिचे और कुंड तालाब तेजी से नष्ट हो रहे हैं। पवित्र ब्रज की मिट्टी कंक्रीटीकरण से जहरीली हो रही है, और मंदिरों में कॉम्प्लेक्स खुल रहे हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम इस दिशा में जागरूकता फैलाएं।
ध्वनि प्रदूषण का संकट
ब्रज में पारंपरिक ब्रज लोकगीत और शास्त्रीय संगीत की जगह अब कान फोड़ू और बेहूदे लोकगीतों ने ले ली है। मंदिरों में प्री-रिकॉर्डेड संगीत पर जोरदार भक्ति गीत सुनाई देते हैं, जो न केवल तीर्थयात्रियों को परेशान करते हैं, बल्कि आध्यात्मिकता को भी कमजोर करते हैं। संगीताचार्य और शिक्षाविदों ने इस ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ चिंता व्यक्त की है, जो ब्रज मंडल की आध्यात्मिक शांति को प्रभावित कर रहा है।
सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा
ब्रज की प्राचीन संगीत परंपराएं अब केवल यादों में सिमट कर रह गई हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के मधुर सुरों की जगह अब सिर्फ शोर है। इस ध्वनि प्रदूषण के कारण न केवल वातावरण की पवित्रता में कमी आ रही है, बल्कि स्थानीय समुदाय भी प्रभावित हो रहा है। बुजुर्ग और महिलाएं इस शोर से परेशान हो रहे हैं, जिससे उनकी मानसिक शांति भंग हो रही है।
मंदिरों में बदलाव
वृंदावन के मंदिरों में अब केवल अज्ञात कलाकारों द्वारा जोरदार भक्ति गीत सुनने को मिलते हैं, जबकि प्राचीन शास्त्रीय संगीत की परंपरा लुप्त होती जा रही है। स्थानीय संगीताचार्य का कहना है कि यह स्थिति ब्रज की आध्यात्मिकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है।
जागरूकता की आवश्यकता
ब्रज में संगीत की प्राचीन परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना जरूरी है। हमें स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना होगा ताकि वे अपने अधिकारों की वकालत कर सकें। ब्रज मंडल की शांति और सौंदर्य को बनाए रखने के लिए एकजुट होना होगा।
ब्रज के पवित्र स्थलों को बचाने के लिए हमें अपनी संस्कृति, परंपरा और संगीत को सुरक्षित रखना होगा। यह केवल संगीत का मामला नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा का भी प्रश्न है।
ब्रज मंडल में “राधे, राधे” का जाप केवल एक शब्द नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। आइए, हम सब मिलकर इसे बचाने का प्रयास करें।