ट्रंप युगीन अमेरिका सपनों का एल डोराडो नहीं रहेगा !!!, विश्व शांति के नए नायक डोनाल्ड ट्रंप, युद्ध आधारित अमेरिकी आर्थिक तंत्र को कैसे बदलेंगे?

Dharmender Singh Malik
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ट्रंप युगीन अमेरिका सपनों का एल डोराडो नहीं रहेगा !!!, विश्व शांति के नए नायक डोनाल्ड ट्रंप, युद्ध आधारित अमेरिकी आर्थिक तंत्र को कैसे बदलेंगे?

बृज खंडेलवाल द्वारा

क्या अमेरिकी जम्हूरियत के नए, उतावले बादशाह, शांति दूत श्री डोनाल्ड ट्रंप विश्व में क्रांतिकारी बदलाव लाने में नायक की भूमिका में सफल होंगे, या उनका बड़बोलापन युद्ध और संघर्षों की नई इबारत लिखेगा? क्या अमेरिकन पूंजीवादी व्यवस्था एक नई “राष्ट्रीय समाजवादी मूल्य आधारित” विचारधारा को अपनाने के लिए तैयार है?
लाला ट्रंप को जल्द समझ आ जाएगा ” बहुत कठिन है डगर पनघट की”। क्लाइमेट चेंज की रियलिटी कोई काल्पनिक भस्मासुर नहीं है।

विशेषज्ञ बताते हैं, “खिलाड़ी तो जबरदस्त हैं डोनाल्ड ट्रंप, लेकिन स्पोर्ट्समैन स्पिरिट नहीं है। टी २० टीम के बल्लेबाज कप्तान के जैसे सौ रन ऑलरेडी ठोक चुके हैं, पहले २४ घंटों में।”

अब क्या? दर्शक उनके प्रशासन के उदय को मौजूदा विश्व व्यवस्था को बदलने की क्षमता के बारे में आशा और संदेह के मिश्रण के साथ देख रहे हैं। एग्रेसिव नेशनलिज्म के दिन लद गए हैं, ग्लोबल वर्ल्ड में सभी देश एक दूसरे के पूरक हैं।

अधिकांश टिप्पणीकार मानते हैं कि, कई ज्योतिषीय योग और कारक बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बुनियादी संरचना और वैश्विक शक्ति संतुलन इस ट्रंप युग की व्यवस्था के तहत नाटकीय रूप से बदलने नहीं जा रही है।

सबसे पहले आसमान के सितारों की बात करें। वैदिक सूत्रम के चेयरमैन प्रमोद गौतम को विश्व युद्ध की प्रबल आशंका है। “ज्योतिषीय विन्यास को इतिहास की चक्रीय प्रकृति के रूपक के रूप में देखा जा सकता है। जिस तरह ग्रहों की चाल दोहरावदार होती है, उसी तरह मानव समाज संघर्ष और समाधान के पैटर्न का पालन करते हैं। यह चक्रीय वास्तविकता बताती है कि व्यक्तिगत नेतृत्व शैलियों और नीतियों के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय संबंधों को चलाने वाली अंतर्निहित ताकतें स्थिर रहती हैं। भू-राजनीतिक समीकरण, जैसे कि क्षेत्रीय विवाद और राष्ट्र-राज्यों के बीच शक्ति का संतुलन, ऐसी बाधाएँ पैदा करते हैं जो ट्रम्प प्रशासन द्वारा शुरू किए जाने वाले किसी भी आमूलचूल परिवर्तन को सही अंजाम तक नहीं पहुंचने देंगे।”
इसके अलावा, इतिहास बताता है कि अमेरिकी सैन्य-औद्योगिक रिश्ते या स्वार्थ, विदेश नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने दशकों से वैश्विक स्तर पर एक मजबूत सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है, जो संघर्ष से लाभान्वित होने वाले आर्थिक मॉडल द्वारा संचालित है। रक्षा अनुबंधों से जुड़े पर्याप्त वित्तीय निवेशों के साथ, शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंधों की ओर बदलाव इस लाभदायक यथास्थिति को बाधित कर सकता है। युद्ध मशीन के निहित स्वार्थ यह सुनिश्चित करते हैं कि अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में सैन्य कार्रवाइयों में संलग्न रहे।”

वैश्विक निर्भरता उस वातावरण को और जटिल बनाती है जिसमें ट्रम्प प्रशासन काम करता है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाएँ व्यापार, संचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से जटिल रूप से जुड़ी हुई हैं, जिससे न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था बल्कि वैश्विक बाज़ार भी अस्थिर हो सकते हैं। अगर अमेरिका व्यापारियों के हाथ में खेलना चाहता है, तो मार्केट तो उसे भी चाहिएगा। या ऐलान मुश्क सारा अमेरिकी उत्पादन मंगल ग्रह पर बेचेंगे।

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इक्कीसवीं सदी में देश अलगाववादी नीतियों को अपनाने से हिचकिचा रहे हैं, यह पहचानते हुए कि जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए सहयोग आवश्यक है। कोई देश या समाज अब टापू नहीं बचा है, गिव एंड टेक, व्यावसायिक आदान प्रदान दोनों पक्षों के लिए जरूरी है। अमेरिकी पूंजीवादी व्यवस्था को सस्ती लेबर और बड़े मार्केट चाहिए। भारत या चीन से किस हद तक पंगा लेकर, क्या अमेरिकी आर्थिक साम्राज्यवाद टिकाऊ या प्रॉफिट देने वाली व्यवस्था बन सकेगा?

पूंजीवादी समाज का तर्क मूल रूप से राजनीतिक परिदृश्य को आकार देता है। पूंजीवाद में, आर्थिक विकास अक्सर उत्पादन और खपत से जुड़ा होता है, जो संघर्ष और प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होते हैं। ऐतिहासिक आर्थिक मजबूरियों ने अमेरिका को एक सदी से अधिक समय से युद्धों में फंसा रखा है। फर्स्ट वर्ल्ड वार के बाद, एक के बाद एक युद्ध, कभी वियतनाम, कभी कुवैत, कभी अफगानिस्तान, अमेरिका उलझा ही रहा है। उसके सिस्टम में आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए सैन्य जुड़ाव आवश्यक है। इसलिए लंबे समय तक शांति की वापसी इन आर्थिक चक्रों को गड़बड़ा सकती है, क्योंकि संघर्षों की कमी से रक्षा में सरकारी खर्च में कमी आ सकती है और इसके परिणामस्वरूप रोजगार सृजन और आर्थिक गतिविधि प्रभावित हो सकती है।

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ऐतिहासिक मिसालें बताती हैं कि आर्थिक मंदी का सामना करने पर अमेरिकी सरकार बार-बार सैन्यवादी दृष्टिकोण पर लौटी है। उदाहरण के लिए, महामंदी में आर्थिक सुधार के साधन के रूप में सैन्य व्यय में वृद्धि देखी गई थी। आर्थिक सम्पन्नता, मुनाफे के लिए एक उपकरण के रूप में सैन्य जुड़ाव का उपयोग करने की भावना अमेरिकी पूंजीपतियों को बहुत एक्साइट करती है।

ट्रम्प प्रशासन की बयानबाजी प्राथमिकताओं में उलटफेर का सुझाव तो दे सकती है, लेकिन बड़े बदलावों की श्रृंखला अक्सर राष्ट्रों को संघर्ष के चक्र में वापस ले जाती है।

 

 

 

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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