चिदंबरम ने कोर्ट के फैसले पर मुकदमे से पहले की कैद करार दिया

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दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में 2019 में हुई हिंसा का मामला

नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत द्वारा दंगे के एक मामले में 11 लोगों को बरी किए जाने और उन्हें बलि का बकरा करार दिए जाने के बाद पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने इसे मुकदमे से पहले की कैद करार दिया है। उन्होंने रविवार को ट्वीट्स की एक सीरीज में कहा कि दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने माना है कि जामिया मिलिया इस्लामिया में 2019 में हुई हिंसा की घटनाओं से जुड़े एक मामले में शरजील इमाम और 10 अन्य को बलि का बकरा बनाया गया था। क्या आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत थे? बिल्कुल नहीं।

उन्होंने कहा कि कुछ आरोपी लगभग तीन साल से जेल में बंद हैं। कुछ को कई महीनों के बाद जमानत मिली है। यह प्री-ट्रायल कैद है। मुकदमे से पहले नागरिकों को जेल में रखने के लिए अयोग्य पुलिस जिम्मेदार है। उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? आरोपी ने जेल में जो महीने या साल बिताए हैं, उन्हें कौन वापस करेगा? उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली जो प्री-ट्रायल कैद को झेलती है, भारत के संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद-19 और 21 का अपमान है। सुप्रीम कोर्ट को कानून के इस दैनिक दुरुपयोग को समाप्त करना चाहिए। जितनी जल्दी हो उतना अच्छा।

दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र और कार्यकर्ता शारजील इमाम, सह-आरोपी आसिफ इकबाल तन्हा और अन्य को जामिया में दिसंबर 2019 में हुई हिंसा की घटनाओं से संबंधित एक मामले में आरोपमुक्त करते हुए कहा कि पुलिस अपराध करने के पीछे वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ रही, लेकिन निश्चित रूप से उपरोक्त आरोपियों को बलि का बकरा बनाने में कामयाब रही। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के मुद्दे पर प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प के बाद हिंसा भड़क गई थी। साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरुल वर्मा ने आदेश पारित किया।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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