पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के सियासी समझौतों और गठबंधन की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इस लेख में मीरापुर विधानसभा उपचुनाव में रालोद के उम्मीदवार मिथलेश पाल की नियुक्ति और पिछले चुनावों में किए गए समझौतों का विश्लेषण किया गया है। जानें, कैसे रालोद को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
नई दिल्ली। पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है, लेकिन पिछले पांच-छह सालों में यह पार्टी गठबंधन की राजनीति में उलझ गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन के दौरान रालोद को कई महत्वपूर्ण समझौते करने पड़े, जिसमें अपने सिंबल पर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाने में मजबूरी शामिल थी। पिछले विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर की छह सीटों में से चार पर रालोद को सपा के नेताओं को हैंडपंप के निशान पर चुनाव लड़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
अब एक बार फिर रालोद प्रमुख जयंत चौधरी की रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं। वर्तमान विधानसभा उपचुनाव में भी ऐसी ही स्थिति बनती नजर आ रही है। मीरापुर विधानसभा उपचुनाव के लिए रालोद ने भाजपा में सक्रिय रही मिथलेश पाल को अपना प्रत्याशी बनाया है। जानकार इस सियासी गठजोड़ और उसके पीछे की रणनीति का आकलन कर रहे हैं। रालोद का तर्क है कि अति पिछड़ा वोट अपने पक्ष में लाने के लिए मिथलेश पाल को टिकट दिया गया है।
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में रालोद ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। मुजफ्फरनगर की सभी छह विधानसभा सीटों पर सपा के प्रत्याशियों को रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ाना पड़ा। पुरकाजी से अनिल कुमार, मीरापुर से चंदन चौहान, खतौली से राजपाल सैनी और मुजफ्फरनगर सदर से सौरभ स्वरूप जैसे नेता सपा के थे, लेकिन सभी को हैंडपंप के निशान पर मैदान में उतारा गया।
लोकसभा चुनाव में सपा और रालोद का गठबंधन टूट गया, जिसकी मुख्य वजह सपा का दबाव था कि वह अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने के लिए रालोद पर दबाव डाल रही थी। सपा ने हरेंद्र मलिक को मुजफ्फरनगर लोकसभा प्रभारी बनाकर चुनावी तैयारी शुरू की थी, और उन्हें गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतारने की बात चल रही थी। हालांकि, कुछ विवादों के कारण यह गठबंधन लोकसभा चुनाव से पहले टूट गया।
इसके बाद, रालोद एनडीए के पाले में चली गई। किसान नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के बाद रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने राजनीतिक पाला बदल लिया। अब मीरापुर उपचुनाव में रालोद की पुरानी रणनीति अपनाने की उम्मीद जताई जा रही है।
इस प्रकार, रालोद के सियासी समझौतों और गठबंधन की राजनीति का दौर जारी है, और पार्टी को अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए नई रणनीतियों की आवश्यकता है।