कोलकाता: पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में इन दिनों आंतरिक कलह और असहमति का माहौल गर्माया हुआ है। पार्टी की वरिष्ठ नेताओं के बीच बढ़ते मतभेदों ने हाल ही में एक नया मोड़ लिया है। 10 जनवरी 2024 को पार्टी ने अपने पूर्व राज्यसभा सदस्य शांतनु सेन और पूर्व विधायक अराबुल इस्लाम को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते निलंबित कर दिया। यह कार्रवाई पार्टी के उपाध्यक्ष जयप्रकाश मजूमदार ने की, जिनके अनुसार यह कदम पार्टी के आंतरिक अनुशासन को बहाल करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
शांतनु सेन का विवाद और पार्टी में हलचल
शांतनु सेन, जो टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के करीबी माने जाते हैं, को हाल ही में पार्टी के भीतर विवादों का सामना करना पड़ा। सेन ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में हुई एक महिला चिकित्सक के दुष्कर्म और हत्या की जांच में पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ी आलोचना की थी। इस मुद्दे पर उनका मुखर रुख पार्टी के भीतर विवाद का कारण बना, जिसके चलते टीएमसी नेतृत्व ने उन्हें निलंबित करने का निर्णय लिया।
उनकी पत्नी काकली सेन भी कोलकाता नगर निगम के वार्ड नंबर 2 से तृणमूल कांग्रेस की पार्षद हैं। हाल ही में उन्हें पार्टी के कुछ व्हाट्सएप ग्रुपों से हटा दिया गया था, जो पार्टी के भीतर बढ़ते तनाव को दर्शाता है।
अराबुल इस्लाम का निलंबन और पार्टी में संघर्ष
टीएमसी के लिए एक और अहम विवाद भांगोर क्षेत्र के पूर्व विधायक अराबुल इस्लाम को लेकर है। अराबुल, जो टीएमसी के एक अन्य वरिष्ठ नेता सौकत मोल्लाह से टकराव के लिए जाने जाते हैं, को भी निलंबित कर दिया गया है। 1 जनवरी 2025 को टीएमसी के स्थापना दिवस पर पार्टी के झंडे के लिए एक विवादित घटना सामने आई थी, जब अराबुल इस्लाम और सौकत मोल्लाह के समर्थकों के बीच हाथापाई हो गई थी। इस संघर्ष के कारण पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, और इसके बाद पार्टी ने इस मामले को गंभीरता से लिया।
अराबुल इस्लाम को लेकर पार्टी लंबे समय से नाराज चल रही थी और अब जाकर उन्हें निलंबित करने का निर्णय लिया गया।
ममता बनर्जी की अनुशासन की कवायद
टीएमसी नेतृत्व के लिए यह निलंबन निर्णय आगामी विधानसभा चुनाव 2026 से पहले पार्टी में अनुशासन और सामंजस्य बहाल करने का प्रयास प्रतीत होता है। नवंबर 2023 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पार्टी में अनुशासन बनाए रखने के लिए कई अनुशासन समितियों का गठन किया था और पार्टी नेताओं को चेतावनी दी थी कि वे पार्टी की नीतियों के खिलाफ जाने से बचें।
ममता बनर्जी ने साफ शब्दों में कहा था कि पार्टी के भीतर अगर कोई भी नेता या कार्यकर्ता पार्टी के हितों के खिलाफ काम करेगा तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। उनकी यह कड़ी चेतावनी इस समय पार्टी के आंतरिक संकट को लेकर और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
भविष्य में टीएमसी का मार्ग
टीएमसी की आंतरिक राजनीति में यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दे रहा है। एक ओर जहां ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में पार्टी अपनी रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, वहीं दूसरी ओर आंतरिक कलह और असहमति पार्टी के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। पार्टी के नेताओं के बीच की तलवारें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को अपने अंदर के मतभेदों को सुलझाना होगा और अनुशासन को प्राथमिकता देनी होगी।
इस निलंबन से पार्टी में और भी असमंजस पैदा हो सकता है, लेकिन एक बात तो साफ है कि ममता बनर्जी अपनी पार्टी के भीतर सत्ता और अनुशासन बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठा रही हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि टीएमसी अपने आंतरिक संकट से कैसे निपटती है और क्या यह निलंबन पार्टी के भविष्य के लिए शुभ साबित होगा या नहीं।