भारत के आर्थिक सुधारों के प्रेरक: मनमोहन सिंह का ऐतिहासिक योगदान

Dharmender Singh Malik
5 Min Read

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक, पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह का आज रात निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे और दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली। मनमोहन सिंह लंबे समय से बीमार थे। वह 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्हें भारत में आर्थिक उदारीकरण और आर्थिक सुधारों का जनक माना जाता है। प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं।

90 के दशक में आर्थिक सुधारों की शुरुआत

मनमोहन सिंह का नाम भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से जुड़ा हुआ है। 1991 में, जब वे वित्त मंत्री थे, भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 5.80 अरब डॉलर था, जिससे देश केवल 15 दिनों तक ही आयात कर सकता था। अगर उस समय भारत को पेट्रोलियम, दवाइयाँ या अन्य आवश्यक सामान आयात करना होता, तो यह संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में भारत ने आईएमएफ (इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड) और यूरोपीय देशों से लोन की मदद मांगी।

See also  बिना पर्ची और पहचान पत्र 2,000 रुपये के नोटों को बदलने पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त

आईएमएफ और यूरोपीय देशों ने भारत को लोन देने की शर्त यह रखी कि भारत में विदेशी कंपनियों को काम करने की अनुमति दी जाए। इसके बाद, सरकार ने विदेशी कंपनियों के लिए द्वार खोलने का निर्णय लिया और इसके साथ ही भारत को जरूरी लोन मिल गया।

एलपीजी मॉडल से आई अर्थव्यवस्था में क्रांति

1990 के दशक में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में एलपीजी (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण) मॉडल को लागू किया गया। इस मॉडल ने भारत की आर्थिक तस्वीर को पूरी तरह बदल दिया। इसके तहत सरकार ने व्यापार के नियमों में लचीलापन लाया, सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया और विदेशी बाजारों के साथ संबंधों को मजबूत किया।

  • उदारीकरण: सरकार ने व्यापार के नियमों को उदार बनाया, जिससे व्यापारियों को अधिक स्वतंत्रता मिली। सरकारी हस्तक्षेप कम हुआ और बाजार व्यवस्था को प्राथमिकता दी गई।
  • निजीकरण: सरकार ने सार्वजनिक स्वामित्व वाली कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम की और निजी कंपनियों को मौका दिया। इसके परिणामस्वरूप कई सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी निजी कंपनियों को बेची गई।
  • वैश्वीकरण: विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार के दरवाजे खोले गए और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ने के अवसर प्रदान किए गए। इसने वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को सुगम बना दिया और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया।
See also  भारत ने बनाया इतिहास: टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन

बैंकों का विस्तार और लाइसेंस राज का खात्मा

एलपीजी मॉडल के तहत बैंकों में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। 1991 में कस्टम ड्यूटी को 220% से घटाकर 150% किया गया और आरबीआई की नीतियों को लचीला किया गया। इस कदम से बैंकों को ब्याज दरों और कर्ज़ के अधिकार तय करने की स्वतंत्रता मिली। इसके परिणामस्वरूप देश में बैंकों का विस्तार हुआ और नई बैंकों की स्थापना भी हुई।

मनमोहन सिंह के सुधारों के तहत लाइसेंस राज को समाप्त किया गया। सरकार ने 18 उद्योगों को छोड़कर अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता खत्म कर दी। इसके साथ ही बाजार को यह स्वतंत्रता मिली कि वह उत्पादन और कीमतों को खुद तय करे।

मनमोहन सिंह का योगदान

मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में अतुलनीय है। उनके नेतृत्व में देश ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कई अहम कदम उठाए, जो आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारशिला बने हुए हैं। उनकी नीतियों ने भारत को वैश्विक आर्थिक शक्तियों के बीच खड़ा कर दिया और देश की विकास दर को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।

See also  आधार कार्ड: नए नियम, संशोधन और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

मनमोहन सिंह के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा, न केवल उनके आर्थिक सुधारों के लिए बल्कि उनकी नीतियों के कारण भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के प्रयासों के लिए। उनके निधन से भारत ने एक महान नेता और प्रेरणास्त्रोत को खो दिया है।

See also  भारत में लोकतंत्र खतरे में है, मेरे फोन में भी पेगासस था, राहुल गांधी ने कैम्ब्रिज में अपने संबोधन के दौरान किया दावा
Share This Article
Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
Leave a comment