केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण बिल पर मुहर लगा दी है। पिछले 27 सालों से अटके विधेयक को पास कराने की पूरी तैयारी हो चुकी है। गौरतलब है कि बिल को लाने वाली मोदी सरकार के साथ-साथ कांग्रेस समेत विपक्ष के भी कई बड़े दल इसके समर्थन में आ गए हैं। हालांकि इससे पहले 2010 में यह बिल राज्यसभा में पास हो गया था। तब देश में यूपीए की सरकार थी। अब सवाल एक यह उठता है कि क्या एनडीए सरकार का यह बिल यूपीए सरकार के मसौदे की तुलना में अलग होगा या वही का वही रहेगा।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, माना जा रहा है कि मोदी सरकार 2010 में राज्यसभा में पास हुए बिल को वापस ले सकती है और संसद के जारी विशेष सत्र में नया बिल पेश कर सकती है। फिलहाल, अंतिम मसौदा पेश होने तक कुछ भी साफ नहीं है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि सरकार इस बिल के दायरे में राज्यसभा और विधान परिषदों को भी शामिल कर सकती है। जबकि, यूपीए ने लोकसभा और विधानसभाओं को ही शामिल किया था। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि नए बिल में महिला आरक्षण के दायरे में ओबीसी समुदाय को भी शामिल किया जा सकता है।
हालांकि यूपीए की तरफ से पेश बिल में कहा गया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के बाद महिलाओं के लिए आरक्षण होगा। उस दौरान समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसे राजनीतिक दलों का कहना था कि आरक्षण में ओबीसी को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसे लेकर भी अटकलों का दौर जारी है कि एनडीए सरकार ये बदलाव करेगी या नहीं। संसद के विशेष सत्र से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े संकेत देते हुए कहा था कि ऐतिहासिक फैसले होने जा रहे हैं। उन्होंने लोकसभा में संबोधन के दौरान भी महिलाओं के योगदान पर बात कतरे हुए बताया कि करीब 600 महिला सांसद इस भवन का हिस्सा रह चुकी हैं।