Atul Subhash आत्महत्या मामले के बीच दहेज मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

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अतुल सुभाष आत्महत्या मामले के बीच दहेज मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

नई दिल्ली। बेंगलुरु के इंजीनियर अतुल सुभाष का मामला हाल ही में पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। 34 वर्षीय अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर 2024 को आत्महत्या कर ली, और इसके बाद उन्होंने एक वीडियो में अपनी पत्नी और उसके परिवार पर दहेज उत्पीड़न और पैसे ऐंठने के गंभीर आरोप लगाए। इस घटना ने न केवल सोशल मीडिया बल्कि न्यायिक व्यवस्था को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं द्वारा दहेज कानून के गलत इस्तेमाल पर अपनी चिंता जाहिर की है।

अतुल सुभाष की आत्महत्या और वीडियो से जुड़े आरोप

अतुल सुभाष ने आत्महत्या से पहले एक 80 मिनट लंबी वीडियो रिकॉर्ड की थी, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और उसके परिवार पर दहेज के नाम पर उन्हें मानसिक उत्पीड़न करने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी और उसके परिवार ने पैसे के लिए झूठे मामले दर्ज करवाए थे। साथ ही, अतुल ने अपने 24 पन्नों के सुसाइड नोट में अपने दर्द को साझा किया, जिसमें उन्होंने भारतीय न्यायिक प्रणाली की कमियों और रिश्तों में सौदेबाजी की कड़ी आलोचना की। उनकी आत्महत्या के बाद एक तख्ती पर लिखा मिला- “जस्टिस इज ड्यू” यानी इंसाफ अभी बाकी है, जो इस मामले के दुखद पहलू को और भी उजागर करता है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद, दहेज कानून के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतों को कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि पति के सगे-संबंधियों को झूठे मामलों में फंसाने की प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानियों से बचाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए कहा कि अगर एफआईआर में आरोप अस्पष्ट हैं, तो परिवार के अन्य सदस्यों को बिना ठोस आरोप के अपराध में घसीटना गलत है। कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में परिवार के अन्य सदस्यों का नाम सिर्फ वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आरोपों के आधार पर नहीं लिया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: अदालतों को चाहिए सावधानी

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अदालतों को इस तरह के मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए और बिना किसी ठोस आधार के आरोपी परिवार के सदस्यों को अपराध में शामिल नहीं करना चाहिए। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अगर किसी मामले में ठोस सबूत नहीं हैं, तो अभियोजन का आधार नहीं बन सकते। अदालत ने यह भी कहा कि परिवार के सदस्यों को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्यों महत्वपूर्ण है?

यह आदेश इस बात को लेकर महत्वपूर्ण है कि अदालतें अब दहेज उत्पीड़न के मामलों में ज्यादा सतर्क रहेंगी। जब आरोप अस्पष्ट या झूठे हों, तो अदालत को मामले की गहराई से जांच करनी चाहिए। विशेष रूप से उन मामलों में, जहां दहेज उत्पीड़न के आरोपों का इस्तेमाल परिवार के सदस्यों के खिलाफ बदला लेने के लिए किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से यह संदेश जाता है कि दहेज कानून का सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि निर्दोष लोगों को न्याय मिल सके।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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