लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक (2025) पास हो गया है, जिससे केंद्र सरकार ने एक राजनीतिक चाल में कई लक्ष्यों को साधा। इस विधेयक पर बहस के बाद 288 वोटों के साथ यह पास हुआ, जबकि 232 वोट विरोध में पड़े। यह बिल अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा। बीजेपी की सहयोगी पार्टियों ने इसका समर्थन किया, जबकि विपक्ष ने इसे असंवैधानिक करार दिया और विरोध किया।
वक्फ संशोधन विधेयक के पक्ष में केंद्रीय मंत्री की बातें
विधेयक पर बहस के दौरान केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने जवाब दिया कि अल्पसंख्यकों के लिए भारत सबसे सुरक्षित जगह है और यहां सभी अल्पसंख्यक समुदाय सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं है और यह समाज के सभी वर्गों के हित में है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड के मामलों में संशोधन केवल प्रशासनिक सुधार के लिए है, न कि धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप करने के लिए।
अमित शाह ने भी इस विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि यह वक्फ बोर्ड और परिषद की कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए है, न कि मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करने के लिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार वक्फ बोर्ड के मुतवल्ली (मैनेजर्स) के काम में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
ओवैसी का विरोध और धर्मनिरपेक्षता पर बयान
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन बताया। उन्होंने यह भी कहा कि इस विधेयक से मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन होगा और यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।
बीजेपी ने एक तीर से 6 निशाने साधे
बीजेपी के लिए इस विधेयक को पारित करना कई राजनीतिक संदेशों को देने वाला कदम था:
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धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा: बीजेपी ने यह साबित कर दिया कि धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा वही है, जो पार्टी चाहती है, न कि जो विपक्ष का दावा था।
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मुसलमानों के मुद्दे पर वोटबैंक की राजनीति की समाप्ति: बीजेपी ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम समुदाय से जुड़े हर निर्णय को मुस्लिम विरोधी के रूप में नहीं देखा जा सकता।
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वोटबैंक की सियासत पर लगाम: बीजेपी ने यह दिखा दिया कि मुस्लिमों को डराकर वोट की सियासत अब काम नहीं आएगी।
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मुसलमानों के हित में बदलाव को सही ठहराना: वक्फ बिल के माध्यम से सरकार ने यह बताया कि मुसलमानों के हित में बदलाव का मतलब यह नहीं कि सरकार धर्मनिरपेक्षता का विरोध कर रही है।
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नीतीश और नायडू के समर्थन को सबक: विपक्ष को यह याद दिलाया गया कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं का समर्थन सरकार के पक्ष में है, और इसे नकारा नहीं किया जा सकता।
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मोदी सरकार के फैसलों में बदलाव नहीं: भले ही बीजेपी की सीटें कम हुईं हैं, लेकिन सरकार की निर्णय लेने की गति और ताकत में कोई कमी नहीं आई है।
क्या वक्फ संशोधन बिल चुनावी राजनीति पर असर डालेगा?
यह सवाल अब सामने है कि क्या वक्फ बिल का पारित होना आगामी चुनावी राजनीति में असर डालेगा। बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में चुनावी समीकरण अब बदल सकते हैं। बीजेपी की मजबूती और सहयोगियों के समर्थन ने विपक्ष की रणनीति को तोड़ दिया, और इसके परिणामस्वरूप वक्फ संशोधन विधेयक आसानी से पारित हो गया।
विपक्ष की आलोचना
विपक्ष ने लगातार यह आरोप लगाया कि सरकार वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की बहुलता बढ़ाना चाहती है, और मस्जिदों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। हालांकि, सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया और स्पष्ट किया कि यह विधेयक केवल वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में सुधार लाने के लिए है, न कि किसी समुदाय के धार्मिक अधिकारों को कमजोर करने के लिए।
मुस्लिम वोट की राजनीति का गणित बदला?
विपक्षी नेताओं ने यह कोशिश की कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं के माध्यम से वक्फ बिल का विरोध कराएं, लेकिन उनका प्रयास विफल हो गया। इससे यह साबित हुआ कि मुस्लिम वोट की राजनीति का गणित अब बदल चुका है। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने बीजेपी के पक्ष में बिल को समर्थन दिया, जिससे विपक्षी रणनीति को बड़ा झटका लगा।