नई दिल्ली: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को धार्मिक स्थलों पर होने वाली वीआईपी व्यवस्था को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि यह वीआईपी व्यवस्था धार्मिक स्थानों पर समानता के सिद्धांत के खिलाफ है और इसे तुरंत समाप्त कर देना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में धार्मिक स्थलों को समानता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया और कहा कि इन स्थानों पर सभी व्यक्तियों को एक समान दर्जा मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी जोर दिया कि वीआईपी दर्शन की अवधारणा भक्ति के खिलाफ है और इसे पूरी तरह से समाप्त करना चाहिए।
समानता और समरसता का संदेश
धनखड़ ने कहा कि धार्मिक स्थल सभी के लिए बराबरी का स्थान होते हैं, जहां सभी व्यक्ति ईश्वर के सामने एक जैसे होते हैं। “जब किसी को विशेषाधिकार या वीआईपी का दर्जा दिया जाता है, तो यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है,” उन्होंने कहा। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति ने धार्मिक स्थलों पर समानता की भावना को बढ़ावा देने का आह्वान किया।
उन्होंने कर्नाटक के एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां सभी भक्तों को समान दर्जा मिलता है और यह संदेश देता है कि धार्मिक स्थल किसी भी व्यक्ति के लिए भेदभाव का स्थान नहीं हो सकते।
धार्मिक स्थलों के विकास की सराहना
धनखड़ ने धर्मस्थलों के बुनियादी ढांचे में हालिया सुधारों की भी सराहना की और कहा कि इन सुधारों का उद्देश्य केवल भौतिक उन्नति नहीं है, बल्कि यह हमारी सभ्यता और सांस्कृतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि ऐसे विकास से केवल भव्यता ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता भी बढ़ेगी।
राजनीतिक कटुता से ऊपर उठने की अपील
धर्मस्थल पर आयोजित एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति ने राजनीति में कटुता से बचने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा कि राजनीति का असली उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज की सेवा करना होना चाहिए। इस दौरान उन्होंने भारत की विविधता को स्वीकार करते हुए उसकी एकता को बनाए रखने का भी आह्वान किया।
धार्मिक स्थलों पर वीआईपी व्यवस्था की आलोचना
वीआईपी व्यवस्था को समाप्त करने की बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर यह व्यवस्था उनके मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। “ईश्वर के सामने कोई बड़ा या छोटा नहीं होता,” उन्होंने कहा। उपराष्ट्रपति ने यह भी बताया कि धार्मिक स्थलों का विकास समानता और समरसता को बढ़ावा देने के लिए होना चाहिए, ताकि हर भक्त को बिना किसी भेदभाव के दर्शन का समान अवसर मिले।