भारत-पाक तनाव के बीच वकीलों की ‘नो वर्क डे’ पर भड़के चीफ जस्टिस, कहा – सेना लड़ रही, आप आराम कर रहे?
चंडीगढ़: भारत और पाकिस्तान के बीच बने गंभीर तनाव और युद्ध जैसे हालातों के मद्देनजर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा शुक्रवार को काम बंद रखने के फैसले पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू ने कड़ी आपत्ति जताई है। चीफ जस्टिस ने वकीलों के इस निर्णय पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि “हमारी सेना दुश्मन से युद्ध लड़ रही है, लेकिन आप लोग घर बैठकर आराम करना चाहते हैं।”
दरअसल, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने बृहस्पतिवार की रात देश में उत्पन्न हुए युद्ध जैसे हालातों का हवाला देते हुए शुक्रवार को “नो वर्क डे” (काम नहीं करने का दिन) मनाने का फैसला लिया था। इसके साथ ही बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट से यह भी अनुरोध किया था कि शुक्रवार को कोई भी प्रतिकूल आदेश पारित न किया जाए।
बार एसोसिएशन के इस फैसले के कारण आज (शुक्रवार) अधिकांश वकील हाईकोर्ट से अनुपस्थित रहे, जिसके चलते अदालतों को बड़ी संख्या में मामलों की सुनवाई स्थगित करनी पड़ी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमित गोयल की खंडपीठ इस दौरान पंजाब और हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे को लेकर चल रहे एक महत्वपूर्ण विवाद से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। तभी पंजाब सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के कार्य स्थगन का हवाला देते हुए मामले की सुनवाई अगली तारीख तक स्थगित करने की मांग की।
पंजाब सरकार के वकील की इस मांग पर चीफ जस्टिस शील नागू बुरी तरह से नाराज हो गए और उन्होंने वकीलों के काम बंद करने के आह्वान को “दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया। जस्टिस नागू ने सख्त लहजे में कहा, “मैंने बार एसोसिएशन के अध्यक्ष से भी इस बारे में बात की है। यह विशेष रूप से तब और भी दुर्भाग्यपूर्ण है जब हमारे देश की सेना मुल्क की हिफाजत के लिए दुश्मन देश से सीमा पर लड़ाई लड़ रही है, और आप लोग घर बैठकर आराम फरमाना चाहते हैं। यह एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।”
हालांकि, चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि संस्थाओं को अपना काम जारी रखना होगा। जस्टिस नागू ने कहा, “हमें भी अपना काम करना होगा, अन्यथा पूरे देश की व्यवस्था ठप हो जाएगी।” अदालत ने मामले की सुनवाई स्थगित करने की वकील की मांग को अस्वीकार कर दिया, लेकिन वकीलों की अनुपस्थिति के कारण सुनवाई प्रभावी रूप से आगे नहीं बढ़ सकी। चीफ जस्टिस की यह कड़ी टिप्पणी वकीलों के कर्तव्य और देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी पर एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है, खासकर ऐसे संवेदनशील समय में जब राष्ट्र एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है।