फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से सांसद राज कुमार चाहर ने वर्ष 2019 में विजय परचम लहराते हुए रचा था इतिहास, इतनी बड़ी जीत तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी नहीं मिली थी।
फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से विजयी भाजपा प्रत्याशी राजकुमार चाहर ने इतिहास रच दिया था । उन्हें 4,95,065 वोटों से जीत मिली थी। चाहर को कुल 6,67,147 वोट मिले। ब्रज के आगरा क्षेत्र में इतने वोट न तो कभी किसी को मिले, न ही इतने अंतर से कोई जीता। इतना ही नहीं, चाहर की यह जीत नरेंद्र मोदी की जीत से भी बड़ी थी ।
नरेंद्र मोदी ने वाराणसी सीट से अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हुए 479505 वोटों से जीत दर्ज की थी । उन्हें इस बार 674664 वोट मिले। ये दोनों आंकड़े राजकुमार से कम थे । राजकुमार को मिले वोटों को अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सीकरी में गठबंधन के प्रत्याशी गुड्डू शर्मा की तो जमानत जब्त हो गई थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर को और तीन हजार वोट कम मिलते तो उनकी भी जमानत जब्त हो जाती।
ये रहा था आंकड़ा
- राजकुमार चाहर – भाजपा – 6,67,147
- राज बब्बर – कांग्रेस – 1,72,082
- श्रीभगवान शर्मा – बसपा – 1,67,663 ( जमानत जब्त)
जीत का अंतर – 4,95,065
राज बब्बर ने कभी सपने में नहीं सोचा होगा कि एक दिन उस राजकुमार से हार जाएंगे जिसने कभी उन्हें ही चुनाव लड़ाया था। सीकरी में कुल 15 उम्मीदवार थे, 13 अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे ।
वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में कीर्तिमान रचने वाले राजकुमार चाहर तीन बार फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट पर हार चुके हैं। सांसद चौधरी बाबूलाल का टिकट कटने के बाद उन्हें टिकट मिला था और वो इस सीट पर सबसे बड़ी जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे ।
वर्ष 2002 में राजकुमार चाहर ने राजनीतिक करियर शुरू किया और सीकरी के किसानों की आवाज उठाई। बसपा से वो पहली बार लड़े, पर 30,970 वोट पा सके। 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा का दामन थाम चुनाव लड़ा, पर महज 1400 वोटों से हार गए।
वर्ष 2012 में चाहर भाजपा से बागी हुए और निर्दलीय ही चुनाव लड़े पर साढ़े पांच हजार वोटों से हार गए। इसके बाद वो कांग्रेस सांसद राज बब्बर के साथ रहे, लेकिन 2014 में फिर भाजपा में आ गए। चाहर रालोद के जिलाध्यक्ष भी रहे चुके हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर भरोसा जताते हुए राजकुमार चाहर को फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अब देखना होगा की राजकुमार चाहर पार्टी के इस विश्वास को बचा पाते हैं या नहीं।