Firozabad: प्रत्याशी चयन में अनदेखी भाजपा को पड़ी महंगी, चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी का संगठन और आरएसएस से नहीं बन सका तालमेल

Firozabad: प्रत्याशी चयन में अनदेखी भाजपा को पड़ी महंगी, चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी का संगठन और आरएसएस से नहीं बन सका तालमेल

Aditya Acharya
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फ़िरोज़ाबाद । भारतीय जनता पार्टी द्वारा जनपद में जिस तरह से प्रत्याशी चयन में स्थानीय संगठन के साथ प्रदेश संगठन की अनदेखी की, उसका नतीजा भाजपा को पार्टी प्रत्याशी की हार से चुकाना पड़ा। प्रत्याशी की घोषणा नामांकन से मात्र एक दिन पूर्व करने और प्रत्याशी द्वारा भाजपा संगठन और आरएसएस से कोई तालमेल न बैठाने का नतीजा पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा।

चुनाव के दौरान जिस तरह से भाजपा नेताओं को फिरोजाबाद सीट को लेकर जीत की पूरी संभावना थी, वो मतगणना के दौरान धूमिल हो गई। भाजपा को इस हार से सबक जरूर लेना चाहिए और पार्टी के निचले स्तर से ऊच्च स्तर तक के संगठन के कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए। इसके साथ ही भाजपा के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी रही। जो पूरे चुनाव के दौरान अपनी ढपली अपना अलाप रागते नजर आए।

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इसके बाबजूद पार्टी संगठन ने स्थानीय स्तर पर आकर भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में तालमेल बैठाने की कोशिश नहीं की गई। लोगों ने जमकर भितरघात भी किया। पूरे दिन प्रत्याशी के साथ रहने के बाद वोट के लिए दूसरी पार्टी के प्रत्याशी के लिए प्रचार किया। जनपद में भाजपा नेताओं की आपसी खींचतान और झगड़ों को सुलझाना होगा। तभी पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।

हार का दूसरा फैक्टर ओवर कोन्फीडेंस भी रहा। भाजपा के प्रदेश संगठन के साथ ही केंद्रीय संगठन को भी एसा आभास नहीं था कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में पार्टी का इतना खराब प्रदर्शन रहेगा।

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पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भाजपा को एकबार फिर भारी पड़ी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी के कार्यकाल में भी भाजपा के लोगों को अतिउत्साह हो गया था, जिसकी बजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। वही गलती इस बार भी भाजपा ने दोहराई है। भाजपा के प्रदेश एवं केंद्रीय संगठन के पदाधिकारियों को इस पर गहनता से मंथन करना होगा। तभी भाजपा वर्ष 2027 के चुनाव में प्रदेश में भाजपा की सरकार को रिपीट कर सकती है, अन्यथा भाजपा को 2027 में भी इन नतीजों को दोहराना पड़ सकता है।

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