प्रयागराज, उत्तर प्रदेश: इस बार का महाकुंभ अपने साथ कुछ अनोखी और दिलचस्प कहानियाँ लेकर आया है। जहाँ एक ओर श्रद्धालु पुण्य कमाने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयागराज की रेती पर आकर स्नान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक परिवार ने अपनी 13 साल की बेटी को जूना अखाड़े में दान कर दिया। यह घटना न केवल समाज में चर्चा का विषय बन चुकी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कुंभ मेला न केवल धार्मिक अनुष्ठान बल्कि जीवन की नई शुरुआत का भी प्रतीक है।
आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का निर्णय
प्रयागराज में हो रहे महाकुंभ मेले में शामिल होने के लिए विभिन्न हिस्सों से लोग आ रहे हैं। इन श्रद्धालुओं में आगरा के दिनेश ढाकरे और उनकी पत्नी रीमा भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी 13 साल की बेटी, गौरी, को जूना अखाड़े में दान कर दिया। यह परिवार सनातन धर्म की सच्ची राह पर चलते हुए इस निर्णय पर पहुंचा। उनका मानना है कि उनकी बेटी गौरी को अब भक्ति और साधना की दिशा में जीवन व्यतीत करना चाहिए, और उन्होंने यह विश्वास किया कि यह उनका कर्तव्य है कि वह अपनी बेटी को इस जीवन में एक अलग प्रकार की आस्थावान राह पर चलने का मौका दें।
कन्या दान का महत्व
कुंभ मेले में कन्या दान करने की परंपरा बहुत पुरानी है। इस परंपरा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी कन्या को दान करता है, तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। दिनेश ढाकरे और रीमा ने अपनी बेटी गौरी को जूना अखाड़े में दान किया और यह विश्वास जताया कि अब उनकी बेटी आध्यात्मिक कार्यों में लिप्त रहेगी और अपना जीवन भक्ति में बिताएगी।
गौरी के भक्ति के प्रति आकर्षण की कहानी
गौरी की मां रीमा का कहना है कि यह सब ऊपर वाले की इच्छा से हुआ है। उनका कहना था कि हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे से पढ़ाई करें, अच्छे काम करें और आगे बढ़ें, लेकिन गौरी शुरू से ही शादी से नफरत करती थी और भक्ति के प्रति विशेष आकर्षण महसूस करती थी। उन्होंने बताया कि गौरी के अंदर कुछ शक्ति जागृत हुई थी और उसने भजन और साधना की ओर कदम बढ़ाया। इसके बाद, गौरी ने खुद निर्णय लिया कि उसे साधु बनना है और जीवन को भक्ति के मार्ग पर चलना है।
पूरी परंपरा के साथ जूना अखाड़े में शामिल किया गया
गौरी को पूरी धार्मिक परंपरा और विधि-विधान के साथ जूना अखाड़े में शामिल किया गया। हालांकि, उनकी आध्यात्मिक यात्रा अब शुरू हुई है और कुछ संस्कार अभी बाकी हैं, जैसे पिंडदान और तड़पन, ताकि वह पूरी तरह से अखाड़ा के रिवाजों में शामिल हो सकें। महंत का कहना है कि अब गौरी को आध्यात्मिक शिक्षा दी जाएगी, जिससे वह अपने जीवन को एक नए उद्देश्य के साथ आगे बढ़ा सके।
कुंभ में दान का महत्त्व
महाकुंभ मेले में दान का विशेष महत्व होता है। यहाँ पर लोग अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार विभिन्न दान कार्यों में हिस्सा लेते हैं, जिनमें कन्या दान एक प्रमुख परंपरा है। इस दान से पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग मिलता है। गौरी का दान इस परंपरा का एक सुंदर उदाहरण बन चुका है, और यह संदेश देता है कि भक्ति का मार्ग किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है।
महाकुंभ में हुई इस अनोखी घटना ने यह साबित किया कि भक्ति और आस्था के मार्ग में किसी प्रकार की बाधाएँ नहीं होतीं। एक 13 साल की बच्ची ने अपने जीवन को भक्ति के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया और उसके माता-पिता ने इस निर्णय में पूरा सहयोग किया। यह कहानी न केवल एक परिवार की आस्था की है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि महाकुंभ का मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर भी है।