पिपहेरा में पारंपरिक तरीके से होली का पवित्र उत्सव, एक अनोखा दृश्य

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पिपहेरा में पारंपरिक तरीके से होली का पवित्र उत्सव, एक अनोखा दृश्य

धौलपुर, सैंपऊ:  राजस्थान के उपखंड सैंपऊ के गाँव पिपहेरा में आज भी होली का पर्व पारंपरिक तरीकों से बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गाँव के लोग इस अवसर पर होली के गीत गाते हुए, डफ, डोलक, मजीरे और अन्य वाद्य यंत्रों के साथ पूरे गाँव की परिक्रमा करते हैं। इस अनूठे उत्सव में न सिर्फ युवाओं, बल्कि वृद्ध और बच्चों का भी सक्रिय योगदान रहता है। सभी लोग मिलकर होली के गीत गाते हैं और वातावरण को खुशी और उल्लास से भर देते हैं।

गाँव के सेवानिवृत शिक्षक खेमचन्द्र त्यागी का अनुभव

गाँव के सेवानिवृत शिक्षक खेमचन्द्र त्यागी जी बताते हैं कि पिपहेरा में कई मोहल्ले हैं, जो होली के समय दो थोकों में बंटकर उत्सव मनाते हैं। एक थोक के लोग गाते-बजाते हुए गाँव में भ्रमण करते हैं, और उनके पीछे दूसरा थोक उसी तरह से गाँव में भ्रमण करता है। दोनों थोक एक-दूसरे के साथ गाते-बजाते हुए होली का आनंद लेते हैं। खेमचन्द्र जी कहते हैं, “यह परंपरा हमारे गाँव की एक अहम पहचान बन चुकी है और यहाँ का उत्सव ऐसा लगता है जैसे हम बृज में होली खेल रहे हैं।”

होली के गीत और शोक युक्त गीतों का महत्व

गाँव के सामाजिक कार्यकर्ता बालकृष्ण तिवारी और सैपऊ खंड प्रचार प्रमुख भूपेन्द्र त्यागी ने बताया कि पिपहेरा में होली के उत्सव की शुरुआत आमला एकादशी के दिन या उसके आसपास होती है। इस दिन गाँव के लोग पूर्वजों की याद में अनराए गाकर होली के उत्सव का आरंभ करते हैं। इस दौरान, गाँव के सभी लोग शाम को एकत्रित होते हैं और उन सभी लोगों को याद करते हैं जो पिछले संवत में परम पद प्राप्त कर चुके हैं। वे उनके घर-घर जाकर होली के शोक युक्त गीत गाते हैं, ताकि उन लोगों के शोक को समाप्त किया जा सके और समाज में सकारात्मकता का संचार हो सके।

महिलाओं की अहम भूमिका

पिपहेरा में होली के इस पारंपरिक उत्सव में मातृशक्ति भी पीछे नहीं रहती। महिलाएँ अपनी-अपनी टोली बनाकर गाँव में होली खेलती हैं और विशेष रूप से उन घरों में जाती हैं, जहाँ अनराए गाए जा चुके हैं। यहाँ पर यह मान्यता है कि जब तक महिलाओं द्वारा उन परिवारों में होली के रंग नहीं डाले जाते, तब तक उत्सव को पूर्ण नहीं माना जाता। महिलाओं की यह भूमिका उत्सव को और भी रंगीन और उल्लासपूर्ण बनाती है।

होली के समापन पर मेला और सत्संग

गाँव में होली का उत्सव लगभग 8 से 10 दिनों तक चलता है, और इसमें विभिन्न तरीकों से होली का आनंद लिया जाता है। होली के समापन के रूप में चैत्र कृष्ण छठ को श्रीधाम मढेकी वाले बालाजी मंदिर पर मेला आयोजित किया जाता है। इस वर्ष, तृतीया से पंचमी तक सत्संग का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें श्री धाम कुल्हाड़ा के श्रीश्री १०००८ श्री स्वामी भाष्करानन्द जी और अन्य संतों द्वारा प्रवचन दिए जाएंगे। छठ के दिन, झाँकी का आयोजन किया जाएगा, जिसके साथ ही इस अद्वितीय होली उत्सव का समापन होगा।

जहाँ आजकल गाँवों में होली के पारंपरिक उत्सव धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं, वहीं पिपहेरा का यह उत्सव उस समय को जीवित रखने का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहाँ के लोग अपने पुराने रीति-रिवाजों को पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं, जो न सिर्फ समाज में भाईचारे का प्रतीक है, बल्कि यह एक प्रेरणा भी देता है कि हमारे पारंपरिक उत्सवों को जीवित रखना कितना महत्वपूर्ण है।

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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