आगरा। भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के संगठन के तहत आगरा जिले में जिलाध्यक्ष के पद के चुनाव की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। आगरा को दो प्रमुख जिला इकाइयों में विभाजित किया गया है – आगरा महानगर और आगरा देहात जिला। इन दोनों जिलों के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन हो चुके हैं और अब छंटनी की प्रक्रिया पूरी हो रही है। यह छंटनी प्रक्रिया आज लखनऊ में बृज क्षेत्र के जिलों के पैनलों पर चर्चा के दौरान तय की जाएगी।
आगरा में जिलाध्यक्ष पद के लिए 81 दावेदार
आगरा में जिलाध्यक्ष पद के लिए कुल 83 दावेदार सामने आए थे, जिनमें से 81 दावेदारों को अब छंटने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व के सामने यह चुनौती है कि इस भारी भीड़ में से किन्हीं दो दावेदारों को जिलाध्यक्ष का पद सौंपा जाएगा। चुनाव अधिकारियों द्वारा पहले चरण में 25 नामों की छंटनी की गई है, इसके बाद दूसरे चरण में महानगर भाजपा के 20 से ज्यादा नामांकनों को भी छंटा दिया गया है।
आज लखनऊ में चर्चा, पैनल तैयार
आज दोपहर दो बजे से लखनऊ में बृज क्षेत्र के जिलों के पैनल पर चर्चा की जाएगी, जिसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता, सांसद, विधायक और प्रांतीय पदाधिकारी शामिल होंगे। इस बैठक में जिलाध्यक्ष पद के लिए अंतिम पैनल तैयार किया जाएगा। हालांकि, इस पैनल की घोषणा आज नहीं की जाएगी, लेकिन सूत्रों के अनुसार आज ही जिलाध्यक्ष के नाम तय किए जा सकते हैं।
मुख्य दावेदारों में बड़े नाम
जिन दावेदारों के नाम छंटने के बाद अंतिम पैनल में शामिल होंगे, उनमें से कई ऐसे प्रमुख चेहरे हैं जिनकी दावेदारी नकारना प्रदेश नेतृत्व के लिए एक कठिन कार्य हो सकता है। इन दावेदारों की पार्टी के प्रति लंबी और सशक्त सेवाएं रही हैं, और इनका प्रभाव पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच भी देखा जाता है। इन दावेदारों का नाम नकारने पर पार्टी नेतृत्व के लिए कई जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
दावेदारों में भागदौड़, पार्टी के अंदर घमासान
वर्तमान में, जिलाध्यक्ष पद के दावेदारों की बीच जबर्दस्त दौड़धूप देखी जा रही है। भाजपा में यह भागदौड़ कुछ वैसी ही है, जैसी किसी विधानसभा या लोकसभा चुनाव के टिकटार्थियों में देखी जाती है। दावेदार लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अपनी दावेदारी को लेकर प्रयासरत हैं। पार्टी के सांसद, विधायक और अन्य वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि जिलाध्यक्ष उनके मनपसंद का बने। इस प्रकार, यह पद ना केवल भाजपा के नेताओं बल्कि पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए भी एक अहम भूमिका निभाएगा।
नामांकन की बाढ़ और प्रस्तावकों की अनिवार्यता
पहले भाजपा ने अध्यक्ष पद के दावेदारों के लिए प्रस्तावकों की अनिवार्यता कर दी थी, लेकिन इसके विपरीत असर देखने को मिला। पार्टी के नेताओं ने अपनी दावेदारी को मजबूत करने के लिए वोटर मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों की पंचायतों के चुनावों की तरह घेराबंदी शुरू कर दी थी। इसके बाद भाजपा नेतृत्व ने प्रस्तावकों की अनिवार्यता में ढील दे दी, जिससे नामांकन करने वालों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई। कई दावेदारों ने यह सोचकर नामांकन किया कि भले ही वे जिलाध्यक्ष पद पर न चुने जाएं, लेकिन उन्हें जिला कमेटी में कोई अन्य पद तो मिल ही जाएगा।
भविष्य में क्या होगा?
अब सवाल यह है कि भाजपा के प्रदेश नेतृत्व की निगाहें किस पर ठहरती हैं। पार्टी के अंदर और बाहर विभिन्न नेताओं के बीच खींचतान बनी हुई है, और ये तय करना मुश्किल हो रहा है कि पार्टी के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार कौन होगा। हालांकि, आज लखनऊ में बैठक के बाद कई दावेदारों की उम्मीदें जरूर खत्म हो सकती हैं, लेकिन जो लोग पैनल में जगह बना पाएंगे, उन्हें अपने कार्यकाल में संगठन को और मजबूत करने का अवसर मिलेगा।
आगरा में भाजपा जिलाध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया दिलचस्प मोड़ पर आ चुकी है। कई दावेदारों के बीच इस पद के लिए मुकाबला तगड़ा है, और भाजपा नेतृत्व को यह निर्णय बहुत सोच-समझ कर लेना होगा। पार्टी के अंदर से लेकर बाहर तक इस चुनाव को लेकर माहौल गर्म है। अब यह देखना होगा कि किसकी लॉटरी लगती है और कौन आगरा जिले में भाजपा के जिलाध्यक्ष के रूप में संगठन को नेतृत्व प्रदान करेगा।