नई दिल्ली: राजस्थान की भजनलाल शर्मा सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह में खुद को भी एक पक्षकार के रूप में शामिल करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राजस्थान सरकार की ओर से महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने इस संबंध में एक प्रार्थना पत्र सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है, जिस पर 16 अप्रैल को सुनवाई होने की संभावना है।
राजस्थान सरकार ने अपने आवेदन में कहा है कि यह कानून राज्य की जनता और स्वयं राज्य के हित में है। चूंकि राजस्थान सरकार वक्फ बोर्ड का संचालन करती है, इसलिए वह भी इस मामले में एक महत्वपूर्ण और प्रभावित पक्ष है। सरकार का तर्क है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राजस्थान सरकार का पक्ष भी सुना जाना चाहिए।
अपने हस्तक्षेप आवेदन में, राज्य सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसे इस मुद्दे में सीधा, महत्वपूर्ण और कानूनी रूप से संरक्षित हित प्राप्त है। इसका कारण यह है कि राज्य ही वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और विनियमन के लिए प्रमुख कार्यकारी प्राधिकरण है। सरकार ने यह भी बताया कि यह हस्तक्षेप आवेदन अधिनियम 2025 के पीछे की विधायी मंशा, इसकी संवैधानिक औचित्य और प्रशासनिक वास्तविकताओं को माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने के उद्देश्य से दायर किया गया है।
राजस्थान सरकार ने अपने आवेदन में यह भी दावा किया है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 भारतीय संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। सरकार ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि इस अधिनियम को संसद में संयुक्त संसदीय समिति द्वारा 284 से अधिक विभिन्न हितधारकों और संस्थाओं के विचारों को ध्यान में रखते हुए सर्वसम्मति से पारित किया गया था।
यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) जैसे कई विपक्षी राजनीतिक दलों और विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर इसे चुनौती दी है। अब राजस्थान सरकार का इस मामले में पक्षकार बनने की इच्छा व्यक्त करना इस कानूनी लड़ाई को और भी दिलचस्प बना देता है। 16 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट राजस्थान सरकार के इस आवेदन पर क्या रुख अपनाता है और इस विवादास्पद कानून पर आगे क्या कार्यवाही होती है।