किसानों की खेतों पर गुजार रहीं सर्द रातें, फिर भी फसल नष्ट कर रहे पशु

आज हर खेत पर हल्कू, पर दर्द बयां करने वाले प्रेमचंद नहीं!
मथुरा। प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय है। कहानी का मुख्य पात्र किसान हल्कू पूस महा की एक रात खेतों की रखवाली करते हुए आग जलाकर लेट जाता है और पशु उसकी फसल नष्ट कर देते हैं। ठीक वैसे ही हालात आज किसानों के हो गए हैं। आज हर खेत पर हल्कू तो है पर दर्द बयां करने वाले प्रेमचंद नहीं। पैगांव निवासी पप्पू किसान कहते हैं कि गेहूं, सरसो, आलू की फसल में काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। किसान बर्बादी के कगार पर हैं। मेघश्याम का दर्द है कि पूरी रात खेतों की रखवाली में गुजारनी पड़ रही है। गोवंशों को खेतों से भगाते हैं तो वे हमलावर हो जाते हैं। समस्या का कोई समाधान नहीं हो रहा। ओमपाल का कहना है कि सर्द रातें हैं गोवंशों के हमलों का डर है। ठिठुरन के बीच डर सताता रहता है, लेकिन क्या करें फसलों की रखवाली के लिए परेशानी झेलना मजबूरी है। अमर सिंह कहते हैं कि गौवंशो से फसलों को बचाया जाए। टोलियों में पशु आते हैं और फसलों को बर्बाद कर चले जाते हैं। गेंहू ,सरसों,आलू की फसलों को इन गोवंश से सबसे अधिक नुकसान है। दावे बड़े बड़े किए जा रहे हैं कि निराश्रित गौवंश को आश्रय दिया जा रहा है,जगह जगह कान्हा निराश्रित गौशाला बनाई गई है लेकिन धरातल की हकीकत कुछ अलग ही बयां कर रही है। गौवंशों का कहर किसानों की फसलों पर ही नहीं बल्कि किसानों पर भी है। क्योंकि फसल की रखवाली कर रहे किसानों पर आए दिन गोवंश हमला करते हैं। लेकिन किसान अपनी फसल की रखवाली के लिए गोवंश का हमला झेलने के लिए भी तैयार हैं। जिले में हजारों की संख्या में निराश्रित गोवंश विचरण कर रहे हैं, लेकिन सरकारी आकलन या गणना के कोई आंकड़े नहीं हैं। पशु चिकित्सा विभाग का दावा रहता है कि कुछ ही निराश्रित पशु बेसहारा हैं

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