अग्रभारत
आश्चर्य से भरी है बात लेकिन 100 प्रतिशत सत्य है। लोगों के आराध्य बांके बिहारी भी आयकरदाता हैं। उन्हें भी अन्य की तरह आयकर विभाग की नोटिस मिलती है। आय का हिसाब देते हैं। नियम के तहत आयकर चुकाते हैं। इस बार उन्होंने साढ़े तीन करोड़ रुपये आयकर के रूप में जमा किया है। यह और बात है कि अपने सेवादारों की लापरवाही से वह कई बार नोटिस का सामना कर चुके हैं। इस समय दान के रूप में उनकी मासिक आय चार से पांच करोड़ रुपये है। उनके बैंक खाते में 248 करोड़ जमा है।
वर्ष 2012 में आयकर विभाग ने पहली बार बांकेबिहारी जी के नाम से मंदिर को नोटिस जारी किया। तब पूछा गया कि वे अपनी आय कहां दिखाते हैं। उस समय सेवादार अर्थात मंदिर कमेटी के लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया। एक माह बाद दूसरी बार नोटिस जारी हुआ। इस नोटिस के बाद बांकेबिहारी के नाम से आयकर रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई, जो दस साल तक चली। पिछले साल इसमें तब मोड आया जब दान की वार्षिक धनराशि 20 करोड़ के आंकड़ें को पार कर गई और इसके सापेक्ष सेवार्थ कार्य नहीं हो पाए। ऐसे में बांके बिहारी को वित्तीय वर्ष 2021-2022 की आय पर पिछले माह सितंबर में साढे तीन करोड़ रुपये आयकर के रूप में चुकाना पड़ा। आगरा के आयकर अधिवक्ता मनोज शर्मा बताते हैं कि आयकर की धारा 12 (ए) के तहत पंजीयन पर आयकर से छूट मिलती है, लेकिन इसके साथ 85 प्रतिशत धर्मार्थ व सेवार्थ खर्च करने की शर्त होती है। 85 प्रतिशत से कम धनराशि खर्च करने पर संबंधित संस्था आयकर के दायरे में आ जाती है। इसके बाद संग्रहित धन पर आयकर देना होता है। बांकेबिहारी प्रकरण में भी यही लागू होता है।
शासन वृंदावन मे बांकेबिहारी धाम के नाम पर गलियारा बनाने की तैयारी कर रहा है। शासन की कमेटी सर्वे कर अपनी योजना के साथ कोर्ट में गई है। योजना में यह बात सामने आई कि बांकेबिहारी के नाम बैंकों में 248 करोड़ रुपये जमा है। इसका उपयोग शासन धाम के लिए जमीन खरीदने में करना चाहता है। इससे असहमत सेवायत भी कोर्ट गए हैं। उनकी मांग है कि धाम का काम सरकार अपने पैसे से कराए, क्योंकि बांकेबिहारी टैक्स चुकाते हैं।