जैथरा,एटा: नगर से पूर्णागिरी माता के दर्शन के लिए रविवार को लगभग 200 श्रद्धालुओं का जत्था रवाना हुआ। नगर के पूर्व एवं वर्तमान नगर पंचायत अध्यक्षों ने श्रद्धालुओं के लिए भोजन पैक, बिस्किट, नमकीन आदि की व्यवस्था कराई। साथ ही, कई समाजसेवी भी श्रद्धालुओं को जलपान वितरित करते नजर आए। नगर के जनप्रतिनिधियों ने श्रद्धालुओं को तिलक लगाकर व अंगवस्त्र देकर विदा किया, जिससे माहौल भक्तिमय हो गया।
श्रद्धालुओं की यह यात्रा जहां धार्मिक आस्था का प्रतीक है, वहीं यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्न भी खड़ा करती है क्या हमारे जनप्रतिनिधियों द्वारा शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए भी ऐसी तत्परता दिखाई गई ? जिस तरह भक्तगण माता रानी के दर्शन के लिए उमड़ते हैं, क्या कभी उन्हें शिक्षा के मंदिरों—जैसे पुस्तकालयों, विद्यालयों, और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के केंद्रों की ओर भी प्रोत्साहित किया जाता है?
धर्म और आस्था व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा हैं, लेकिन समाज के संपूर्ण विकास के लिए शिक्षा की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। जिस प्रकार नगर के जनप्रतिनिधियों ने श्रद्धालुओं की सुविधाओं का ध्यान रखा, यदि वे इसी ऊर्जा और संसाधनों को शिक्षा के विकास में भी लगाते, तो शायद शहर के युवाओं को बेहतर अवसर मिल सकते।
जनप्रतिनिधि अक्सर धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में उनकी रुचि कम ही दिखाई देती है। क्या यह इसलिए है कि शिक्षा लोगों को सवाल करना सिखाती है, जबकि आस्था में प्रश्न कम उठते हैं? जब कोई नेता शिक्षा को बढ़ावा देगा, तो लोग अपने अधिकारों और सामाजिक स्थितियों पर सवाल उठाएंगे, जो शायद राजनीति के लिए असुविधाजनक हो।
आज की इस घटना ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर शिक्षा के क्षेत्र में भी ऐसी ही तत्परता दिखाई जाती, तो शायद बिस्किट-नमकीन की जरूरत ही न पड़ती। समाज आत्मनिर्भर होता और श्रद्धालु सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि बौद्धिक रूप से भी समृद्ध होते। ये धार्मिक यात्राएं आत्मिक शांति देती हैं, लेकिन शिक्षा व्यक्ति के जीवन को बौद्धिक प्रकाश से रोशन करती है।