आगरा: दहेज हत्या और अन्य आरोपों में आरोपी पति अभिषेक और सास श्रीमती रेनू को जिला जज ने बरी कर दिया है। यह निर्णय मृतका श्रीमती सविता के परिवार द्वारा दिए गए पूर्व बयानों से मुकरने के बाद लिया गया। कोर्ट ने गवाही में बदलाव करने वाले परिवार के खिलाफ विधिक कार्यवाही का आदेश भी दिया है। यह मामला थाना एत्माद्दोला के तहत दर्ज था, जिसमें मृतका के पिता विनोद कुमार ने अपनी बेटी की हत्या के लिए आरोपियों पर दहेज हत्या का आरोप लगाया था।
क्या था मामला?
मृतका श्रीमती सविता की शादी 16 फरवरी 2021 को आरोपी अभिषेक से हुई थी। विनोद कुमार ने थाने में तहरीर देकर आरोप लगाया था कि शादी के बाद उसके दामाद अभिषेक, उसकी सास रेनू और अन्य ससुरालीजनों द्वारा अतिरिक्त दहेज के रूप में दो लाख रुपये की मांग की जाती थी।
विनोद कुमार के अनुसार, जब उसने यह रकम देने से इंकार कर दिया, तो ससुराल वालों ने उसकी बेटी श्रीमती सविता को उत्पीड़ित किया और 12 सितंबर 2022 को उसकी हत्या कर दी। इसके बाद पुलिस ने मामले की विवेचना की और आरोपी पति और सास के खिलाफ दहेज हत्या और अन्य धाराओं में आरोप पत्र अदालत में पेश किया।
परिवार के बयान में आया विरोधाभास
अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से विनोद कुमार (वादी मुकदमा), उनकी पत्नी श्रीमती सुमन, ताऊ सन्तोष, भाई वीरेंद्र और पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर को गवाही के लिए पेश किया गया। लेकिन अदालत में यह देखा गया कि मृतका के परिवार के सदस्य अपने पूर्व बयानों से मुकर गए, जिनसे आरोपी के खिलाफ साक्ष्य का अभाव उत्पन्न हुआ।
अदालत का फैसला
जिला जज ने आरोपी पति और सास को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि परिवार के सदस्य पूर्व गवाही से मुकर गए, जिसके कारण आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य नहीं बन पाए। इसके अतिरिक्त, वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक कुमार शर्मा ने आरोपियों की ओर से कोर्ट में तर्क दिए, जो अदालत ने मान्य किए।
इसके बाद, कोर्ट ने वादी मुकदमा (विनोद कुमार) के खिलाफ विधिक कार्यवाही का आदेश दिया। अदालत का मानना था कि गवाही से मुकरने की वजह से यह मामला गहरे संदेह में चला गया है और आरोपियों को बरी करना सही फैसला है।
मृतका के परिवार के लिए यह फैसला
मृतका के परिवार ने यह फैसला काफी दुख के साथ सुना। यह घटना दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए एक उदाहरण बन सकती थी, लेकिन अब परिवार के गवाही में बदलाव से यह मामला काफी जटिल हो गया।
अर्थव्यवस्था पर असर
इस फैसले ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि किस तरह से परिवार के सदस्य यदि साक्ष्य देने से मुकरते हैं, तो न्याय प्रणाली पर इसका प्रभाव पड़ता है। जहां एक ओर दहेज हत्या जैसी जघन्य घटनाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर साक्ष्य का अभाव और गवाही में बदलाव से इन मामलों का फैसला कठिन हो जाता है।