याचिका पर हुई सुनवाई
डॉ. शुक्ल ने उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग और उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा उन्हें प्रिंसिपल पद से हटाए जाने का आदेश चुनौती दी है। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की बेंच ने डॉ. शुक्ल की याचिका पर आज डेढ़ घंटे तक सुनवाई की। इस दौरान सरकारी पक्ष ने डॉ. शुक्ल के खिलाफ हुई विभिन्न जांचों का ब्यौरा पेश किया और बताया कि उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेज फर्जी पाए गए थे, जिसके बाद उन्हें पद से हटाने का निर्णय लिया गया था।
हाई कोर्ट की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शमशेरी ने यह टिप्पणी की कि इतने गंभीर दस्तावेज़ी उल्लंघन के बाद डॉ. शुक्ल को पहले ही क्यों नहीं हटाया गया। यह सवाल उन्होंने बार-बार उठाया, जिससे यह संकेत मिलता है कि अदालत इस मामले में राज्य प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठा रही थी। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या डॉ. शुक्ल को अपना पक्ष रखने का उचित मौका दिया गया था, जिस पर सरकारी पक्ष ने बताया कि आयोग ने उनका पक्ष सुनने के बाद ही यह निर्णय लिया था।
विभागीय जांच का ब्यौरा
उच्च शिक्षा निदेशक के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि उन्होंने स्वयं मामले की जांच करने के लिए आगरा का दौरा किया था और डॉ. शुक्ल को नोटिस भेजा था, लेकिन वह अपने पक्ष को रखने के लिए उपस्थित नहीं हुए। सरकारी पक्ष ने यह भी बताया कि डॉ. शुक्ल के खिलाफ हुई जांचों में फर्जी दस्तावेजों का खुलासा होने के बाद ही उन्हें हटाने का कदम उठाया गया था।
अदालत का फैसला सुरक्षित
सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्द ही इस मामले में अदालत का फैसला आ सकता है। डॉ. शुक्ल ने याचिका में प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा, निदेशक उच्च शिक्षा, आगरा कॉलेज प्रबंध समिति की अध्यक्ष ऋतु माहेश्वरी और कालेज के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. सीके गौतम को पार्टी बनाया है।