शहर से लेकर देहात तक जन्मदिन की शुभकामनाओं के लगे होर्डिंग
Up ,आगरा। प्रो. रामशंकर कठेरिया राजनीति का वह जाना-पहचाना नाम हैं, जो हमेशा रहस्यों से घिरा रहता है। उनकी राजनीति किस करवट बैठेगी, इसका अंदाज़ा समर्थकों से लेकर विरोधियों तक को नहीं होता। संघ की पृष्ठभूमि के कारण उनकी राजनीति अक्सर आने वाले बदलावों की आहट बन जाती है।
आगामी 21 सितंबर को प्रो. रामशंकर कठेरिया का जन्मदिन है। जन्मदिन से एक सप्ताह पहले ही पूरे आगरा शहर से लेकर देहात क्षेत्रों तक उनके आदमकद शुभकामना होर्डिंग जगह-जगह लगाए गए हैं। ये होर्डिंग उनके समर्थकों द्वारा लगाए गए हैं, जिनमें वर्तमान भाजपा पदाधिकारी (शहर एवं जिला संगठन के), विभिन्न सामाजिक संगठनों और व्यापारिक संस्थाओं से जुड़े लोग शामिल हैं। इन होर्डिंगों से साफ संकेत मिल रहा है कि 2009 और 2014 में आगरा शहरी लोकसभा सीट से सांसद रहने और 2019 में इटावा से जीतकर सांसद बनने के बाद भले ही 2024 का चुनाव वह इटावा से हार गए हों, लेकिन उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है।
संघ प्रचारक से भाजपा जिलाध्यक्ष, फिर प्रोफेसर और सांसद—मिला भरपूर अनुभव : प्रो. रामशंकर कठेरिया आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मूल रूप से इटावा जनपद निवासी कठेरिया ने संघ प्रचारक के रूप में आगरा को ही अपनी कार्यस्थली बना लिया। जिला प्रचारक और विभाग प्रचारक रहते हुए उनकी पकड़ स्वयंसेवकों तक मजबूत रही। राजनीति में प्रवेश उस दौर में किया, जब भाजपा प्रदेश की सत्ता से बाहर थी। उन्होंने अपने व्यवहार के दम पर सीधे कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित किया। इसी बीच वह आगरा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी बन गए। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। भाजपा जिलाध्यक्ष रहते हुए हाथरस, बुलंदशहर और आगरा की सुरक्षित लोकसभा सीटों पर उनकी पैनी निगाह रही। प्रचारक से भाजपा में आए कार्यकर्ताओं से उनका सीधा संवाद हमेशा बना रहा। अचानक उन्होंने जिलाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और जब 2009 में उन्हें भाजपा प्रत्याशी बनाकर आगरा से मैदान में उतारा गया तो हर कोई हैरान रह गया।
राजनीतिक विरोधियों और चुनौतियों से निपटने में माहिर कठेरिया : संगठन कौशल में निपुण कठेरिया ने भाजपा में जिलाध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय महासचिव और कई राज्यों के प्रभारी तक की जिम्मेदारी संभाली है। सांसद रहते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी कार्य किया। राजनीति में उनका यह अनुभव हमेशा उन्हें विशिष्ट मुकाम दिलाता रहा है। राजनीतिक विरोधियों की कमी कभी नहीं रही, लेकिन चेहरे पर गंभीरता बनाए रखना, सबकी बातें चुपचाप सुनना और नपा-तुला बोलना ही उनकी कार्यशैली और असली रणनीति रही है।