आगरा। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा तेजतर्रार मंत्री बृजेश पाठक के जिम्मे है। अपनी कार्यशैली को लेकर बृजेश पाठक चर्चित रहते हैं। स्वास्थ्य केंद्रों पर अनियमितताएं मिलने पर उनके द्वारा तत्काल प्रभाव से संज्ञान लिया जाता है। इसके विपरीत जनपद के अछनेरा स्वास्थ्य केंद्र पर उनकी छवि के विपरीत कार्य करके सरकार की मंशा को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
आपको बता दें कि बीते दिनों अछनेरा स्वास्थ्य केंद्र को बदहाली को उजागर करते फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे। परिसर में बेतरतीबी से फैली गंदगी और पेयजल का अभाव साफ दिख रहा था। वहीं स्वास्थ्य केंद्र पर अपने मरीजों का इलाज कराने पहुंचे मरीजों ने अपनी आपबीती बयां करते हुए स्वास्थ्य कर्मियों पर अवैध वसूली के खुलकर आरोप लगाए थे। प्रकरण अभी थमा भी नहीं था कि रविवार को पुनः इसकी पुनरावृत्ति होने लग गई।
बताया जाता है कि गांव नरीपुरा का मुकेश अपनी पत्नी सुधा को लेकर केंद्र पर इलाज कराने पहुंचा। दोपहर में डिलीवरी हेतु भर्ती करा दिया गया। शाम होते होते प्रमुख स्टाफ नदारद हो गया। इधर सुधा की हालत बिगड़ने लग गई। मुकेश को मजबूरन अपनी पत्नी को 108 एंबुलेंस की सहायता से दूसरे स्वास्थ्य केंद्र पर लेकर जाना पड़ा।
सीसीटीवी कैमरे खराब होने की आड़ में हो रहा खेल
सूत्रों के अनुसार स्वास्थ्य केंद्र के सीसीटीवी कैमरे काफी समय से खराब चल रहे हैं। इसका फायदा केंद्र का स्टाफ जमकर उठा रहा है। मरीजों से अवैध वसूली से लेकर केंद्र में जमकर अव्यवस्थाएं फैलाई जा रही हैं। इस मामले में अधीक्षक डॉ जितेंद्र लवानिया द्वारा बताया गया कि असामजिक तत्वों द्वारा सीसीटीवी कैमरों को खराब किया जा रहा है। जब उनसे पूछा गया कि उन अज्ञात असामजिक तत्वों की शिकायत दर्ज कराई गई है क्या, इसके बाद उन्होंने जवाब देना जरूरी नहीं समझा।
जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने लगे सीएमओ
सीएमओ को जनपद के स्वास्थ्य विभाग का मुखिया होने के बावजूद अछनेरा के स्वास्थ्य केंद्र का ढर्रा नहीं सुधर पा रहा है। उनकी ढिलाई से स्टाफ के हौसले बुलंद हो रहे हैं। सीएमओ द्वारा हर बार जवाब मांगने का हवाला देकर प्रकरण को शांत करने की कोशिश की जाती है। जिसका फायदा अधीनस्थ जमकर उठाते हैं। अछनेरा स्वास्थ्य केंद्र के मामले में भी कथित रूप से ऐसा ही प्रतीत होने लगा है। उच्चस्तर पर प्रकरण गूंजने के बावजूद सीएमओ द्वारा गम्भीरता के साथ इसका संज्ञान लेने की जरूरत नहीं समझी गई है। जिसका नुकसान ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।