आगरा– फतेहाबाद रोड स्थित होटल जेपी पैलेस में आयोजित वल्र्ड फेडरेशन आॅफ न्यूरोसर्जिकल सोसायटी (डब्ल्यूएफएनएस) का फाउंडेशन एजूकेशन कोर्स संपन्न, फिर मिलेंगे कहकर विदा हुए दुनिया भर से आए न्यूरोसर्जन्स, आधुनिक तकनीकों पर ज्ञान का आदान-प्रदान हुआ
आगरा। ब्रेन संवेदनशील है। यही है जो पूरे शरीर को नियंत्रित करता है। इसलिए जब इलाज की बात आती है तो न्यूरोसर्जन्स के सामने दोहरी चुनौती होती है। ब्रेन डिजीज के अधिकांश मामलों में एक चिकित्सक सबसे पहले जान बचाने के बारे में सोचता है, इसके बाद किसी तरह की शारीरिक विकलांगता को बचाने के बारे में सोचता है, यदि शारीरिक विकलांगता से बचा नहीं जा सकता तो विकलांगता को मामूली स्तर पर लाने की कोशिश करता है। यह कहना है विशेषज्ञों का।
फतेहाबाद रोड स्थित होटल जेपी पैलेस में आयोजित वल्र्ड फेडरेशन आॅफ न्यूरोसर्जिकल सोसायटी (डब्ल्यूएफएनएस) का फाउंडेशन एजूकेशन कोर्स रविवार को समाप्त हुआ। दूसरे दिन कई तकनीकी सत्र, कार्यशालाएं और शोधपत्र पढ़े गए। देश-दुनिया से आए न्यूरो विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। एक-दूसरे से ज्ञान साझा किया। आयोजन अध्यक्ष व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. मिश्रा ने कहा कि ब्रेन में जब कोई समस्या होती है तो ऐसा नहीं है कि वह केवल ब्रेन तक ही सीमित हैं बल्कि इसका असर हमारे पूरे शरीर पर पड़ सकता है जैसे लकवा या कोमा, इसके अलावा शरीर के किसी अंग में विकलांगता आ सकती है और वह काम करना बंद या कम कर सकता है। इसे संभालने के लिए न्यूरोसर्जन दोहरी चुनौती का सामना करते हैं। आयोजन सचिव व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल ने बताया कि सम्मेलन के दूसरे दिन भी मस्तिष्क से जुडे़े गहन मुद्दों पर चर्चा हुई। सिलसिलेवार रूप से ग्लियोमास, वस्कुलर, एंडोस्कोपी, स्पाइन, हैडेक, स्कल बेस सर्जरी, न्येरासाइंस में आधुनिक विकास आदि विषयों पर तकनीकी सत्र और कार्यशालाएं हुईं। वीडियो सैशन में उन्नत तकनीक के बारे में जानकारी दी गई।
अबू धाबी से आए डाॅ. फ्लोरियन रोजर ने स्कल बेस में दूरबीन विधि से ब्रेन आॅपरेशन की नई तकनीक पर जानकारी दी। इटली से आए डाॅ. फ्रेंको सर्वेदई ने ब्रेन और रीढ़ की हड्डी से जुड़े आॅपरेशन के बाद पुनर्वास के बारे में बताया। एम्स, नई दिल्ली के डाॅ. एसएस काले ने रीढ़ की हड्डी की टीबी के बारे में जानकारी दी।
*विज्ञान और आध्यात्म का गहरा संबंध: डाॅ. आरसी मिश्रा*
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. आरसी मिश्रा ने कहा कि हमारे मस्तिष्क पर बहुत जिम्मेदारियां हैं। हम चाहें तो इसे रोग युक्त बना सकते हैं या चाहें तो इसे रोग मुक्त रख सकते हैं। यह पूरी तरह हमारे उपर है। उन्होंने विज्ञान के आध्यात्म से संबंध को परिभाषित किया। कहा कि पूछा पाठ, योग और व्यायाम जैसी आदतें तनाव के स्तर को काफी नीचे ला सकती हैं और खत्म भी कर सकती हैं। दिमाग के सेहत के लिए यह पहला कदम है। चलना-टहलना शरीर के साथ साथ मस्तिष्क के लिए भी अच्छे व्यायाम हैं। समय से खाने-पीने जैसी आदतें भी इसे शांत रखती हैं। इसलिए ऐसा नहीं है कि हम मस्तिष्क का ख्याल नहीं रख सकते।
*समय रहते पहचान हो तो कोई रोग लाइलाज नहीं: डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल*
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल ने कहा कि शरीर के अन्य रोगों की तरह ही हम कई बार दिमागी रोगों की सफलता दर पर बात करने लगते हैं। दरअसल कोई भी रोग लाइलाज नहीं है। अगर समय रहते बीमारी की पहचान हो जाती है तो इसका इलाज मुमकिन हो जाता है। बीमारी गंभीर होने पर ठीक होने में थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है। वैसे यह लक्षणों और अवस्था पर निर्भर करता है। जैसे ब्रेन स्ट्रोक के अधिकांश मामलों में समय से अस्पताल पहुंचना जरूरी है।
*आज बेहतर तकनीक और मशीनें मौजूद: डाॅ. वीके मेहता*
पारस हाॅस्पिटल गुड़गांव के डाॅ. वीके मेहता ने बताया कि टेक्नोलाॅजी के इस युग में मस्तिष्क रोगों का इलाज पहले से अधिक प्रभावी हो सका है। एमआरआई, सीटी स्कैन जैसी मशीनों ने इलाज की राह आसान बनाई है। संभव है कि भविष्य में माइक्रो रोबोट्स भी आ जाएंगे। रोबोट्स कुछ फिक्स्ड तरीकों से मानसिक बीमारियों का इलाज करेंगे। अभी भी एंडोस्कोप से सर्जरी बेहतर हुई है। बेहतर इमेज गाइडेंस मशीनें आ गई हैं। मिनीमल इनवेसिव सर्जरी की जा सकती हैं। माइक्रोस्कोप एडवासं हो गए हैं, जिनसे और भी अच्छे से पहचान की जा सकती है। सर्जरी के समय पूरी माॅनीटरिंग की जा सकती है।
*सिर पर बहुत छोेटे चीरे से हो जाती है सर्जरीः डाॅ. सुमित सिन्हा*
पारस हाॅस्पिटल गुड़गांव के डाॅ. सुमित सिन्हा ने बताया कि एंडोस्कोप और माइक्रोस्कोप का साथ में इस्तेमाल करके ब्रेन ट्यूमर निकाले जाते हैं। इसमें मरीज के सिर पर बहुत छोटा चीरा लगाया जाता है। इस सर्जरी से मरीज की रिकवरी भी जल्दी होती है। साथ ही इस तकनीक के इस्तेमाल से ट्यूमर के पूरी तरह से निकलने की संभावना ज्यादा रहती है। हाल ही में एक बडे़ मामले में उन्होंने 15 सेमी के घनत्व का ट्यूमर निकाला है। वहीं छोटे ट्यूमर इस तकनीक के इस्तेमाल से आसानी से निकाले जा सकते हैं।
*मेडिकल इंजीनियरिंग के साथ रोबोट : डाॅ. अक्यो मोरिता*
जापान न्यूरोसर्जिकल सोसाइटी का नेतृत्व कर रहे डाॅ. अक्यो मोरिता ने बताया कि न्यूरोसर्जरी में रोबोट की एंट्री हो चुकी है लेकिन इस पर अभी भी बहस छिड़ी है। इससे सर्जरी के अच्छे रिजल्ट हो सकते हैं लेकिन न्यूरोसर्जरी के दौरान नर्व डैमेज भी घातक है। इसलिए इस क्षेत्र में मेडिकल इंजीनियरिंग के साथ रोबोटिक्स की ओर ध्यान जाता है। रोबोटिक सर्जरी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बहुत जरूरी है। हालांकि समय के साथ तकनीकी विकास हुआ है और न्यूरोसर्जरी के क्षेत्र में मेडिकल इंजीनिरिंग और रोबोटिक्स का इस्तेमाल हो रहा है।