नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें अब काफी बढ़ सकती हैं। उनके सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के आरोपों की जांच कर रही तीन न्यायाधीशों की कमेटी ने अपनी 64 पन्नों की रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में कमेटी ने पाया है कि जस्टिस वर्मा पर लगे कदाचार (misconduct) के आरोपों में दम है और वे साबित होते हैं। कमेटी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जस्टिस वर्मा पद पर बने रहने के लायक नहीं हैं और उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की है।
क्या है पूरा मामला: सरकारी आवास में आग और नगदी का मिलना
यह पूरा मामला तब सामने आया जब 14 मार्च 2025 की रात को जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास (30 तुगलक क्रिसेंट) में आग लग गई थी। आग बुझाने के दौरान उनके घर के स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में जली हुई नोटों की गड्डियां मिली थीं। इस गंभीर प्रकरण के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने नकदी मिलने के मामले की जांच के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की एक कमेटी का गठन किया था।
गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर कदाचार साबित
इस जांच कमेटी में जस्टिस शील नागू के साथ जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस अनु शिवरामन भी शामिल थे। कमेटी ने 10 दिनों तक गहन जांच की, जिसमें 55 गवाहों के बयान दर्ज किए गए और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की भी बारीकी से जाँच की गई। इस विस्तृत पड़ताल के बाद कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुँची कि जस्टिस वर्मा पर कदाचार के आरोप सिद्ध होते हैं।
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास का स्टोर रूम, जहाँ नकदी मिली थी, उन्हीं और उनके परिवार के नियंत्रण में था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह साबित होता है कि बरामद हुई जली हुई नकदी को 15 मार्च 2025 की सुबह तड़के वहां से हटा दिया गया था। रिकॉर्ड पर मौजूद प्रत्यक्ष और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को देखते हुए कमेटी का मानना है कि तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना के 22 मार्च 2025 के पत्र में बताए गए आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं।
न्यायिक कामकाज से विरत और स्थानांतरण
आरोप सामने आने के तुरंत बाद जस्टिस यशवंत वर्मा से न्यायिक कामकाज वापस ले लिया गया था। इसके बाद उनका दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरण कर दिया गया। वर्तमान में, वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश तो हैं, लेकिन न्यायिक कामकाज से विरत (detached from judicial work) हैं। जस्टिस वर्मा ने इस प्रकरण को साजिश बताते हुए खुद को निर्दोष बताया था, लेकिन जांच कमेटी की रिपोर्ट उनके दावों के विपरीत है।
यह रिपोर्ट अब न्यायिक हलकों में बड़ी बहस और आगे की कार्रवाई का आधार बनेगी।