श्रीमनःकामेश्वर बाल विद्यालय, दिगनेर में चल रहे श्रीराम लीला महोत्सव में सीता जी की विदाई के बाद हुई कोपभवन लीला

Sumit Garg
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कोपभवन सुनि सकुचेउ राऊ, भय बस अगहुइ परइ न पाऊ

− श्रीमनःकामेश्वर बाल विद्यालय, दिगनेर में चल रहे श्रीराम लीला महोत्सव में सीता जी की विदाई के बाद हुई कोपभवन लीला

− कन्यादान के गूंजे गीत, कैकई− मंथरा और कैकई− दशरथ संवाद सुन श्रद्धालु हुए भावुक

आगरा। उत्साह, उमंग के साथ सीता जी का कन्यादान हुआ और अपने प्रिय पुत्र श्रीराम की वधू सहित अन्य पुत्रों का माता कौशल्या, सुमित्रा और कैकई ने अयोध्या नगरी आगमन पर स्वागत हृदय लगाकर किया किंतु आनंद के इन क्षणाें को जब मंथरा के शब्दों ने भेदा तो जैसे हर श्रद्धालु का हृदय द्रवित हो उठा।
इसके बाद हाय कैकई ये तू क्या करने जा रही है….जैसे शब्द हर किसी की जिव्हा पर आ गए। कोप भवन लीला में एक पिता और पति राजा दशरथ जब भाव युद्ध में फंसे तो हर आंख भर आई। सभी भक्त बोल उठे, अरे अभी तो विवाह की उमंग बिसराई भी न गई थी, ये क्या घड़ी आई।
गढ़ी ईश्वरा, ग्राम दिगनेर, शमशाबाद रोड स्थित श्रीमनः कामेश्वर बाल विद्यालय में चल रहे बाबा मनःकामेश्वरनाथ रामलीला महोत्सव के छठवें दिन राम विवाह, कन्यादान, कैकई मंथरा संवाद, कैकई− राजा दशरथ संवाद लीला का मंचन किया गया। महंत योगेश पुरी और मठ प्रशासक हरिहर पुरी ने स्वरूपों की आरती उतारी। लीला मंचन में जब भगवान राम को अयोध्या का राज देने की चर्चाएं आईं तो रानी कैकई को उसकी दासी मंथरा ने भड़का दिया। मंथरा के बहकावे में आकर कैकई कोप भवन में चली जाती है। कोप भवन का नाम सुनकर ही राजा दशरथ सहम जाते हैं। कैकई राजा दशरथ से राम को वनवास और भरत को राजगद्दी के वर मांगती है। राजा दशरथ विनती करते हैं कि राम को वनवास देने का वर मत मांगों। किंतु कैकई कहती है कि ठीक के राजन अपने वचन से मुकर जाओ। राजा दशरथ कहते हैं रघुकुल रीत सदा चली आईा, प्राण जाएं पर वचन न जाई…। इसी प्रसंग के साथ जब लीला का समापन होता है तो हर श्रद्धालु का हृदय व्याकुल हो उठता है।

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प्रभारी-दैनिक अग्रभारत समाचार पत्र (आगरा देहात)
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