उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इस साल 12 सालों बाद पूर्ण महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी से होगी और यह 26 जनवरी तक चलेगा। महाकुंभ के आयोजन को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी न हो। उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की हैं।
लेकिन इस बीच महाकुंभ के जूना अखाड़े से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां एक महंत को नाबालिग को संन्यास की दीक्षा देने के आरोप में अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया है। इस फैसले के पीछे अखाड़े की परंपराओं और नियमों का उल्लंघन होना बताया जा रहा है।
13 साल की बच्ची को दी दीक्षा
प्राप्त जानकारी के अनुसार, जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि ने 13 साल की राखी सिंह को संन्यास की दीक्षा दी थी। राखी, आगरा की रहने वाली हैं और उनकी उम्र 13 वर्ष है। राखी के माता-पिता ने उन्हें महंत कौशल गिरि को दान में दे दिया था। राखी की इच्छा थी कि वह साध्वी बनकर सनातन धर्म की सेवा करें। इसके लिए उन्होंने स्वयं महंत कौशल गिरि से दीक्षा लेने का अनुरोध किया था।
राखी का परिवार कई सालों से महंत कौशल गिरि से जुड़ा हुआ था, और उन्होंने अपनी बेटी की दीक्षा देने के लिए महंत से संपर्क किया था। राखी के परिवार का कहना है कि बेटी ने खुद महंत से साध्वी बनने की इच्छा जताई थी और यही कारण है कि महंत कौशल गिरि ने उसे संन्यास की दीक्षा दी।
जूना अखाड़े से निष्कासन
हालांकि, यह कदम जूना अखाड़े की परंपराओं और नियमों के खिलाफ था। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की महासभा ने इस घटना को गंभीरता से लिया और सर्वसम्मति से महंत कौशल गिरि को 7 साल के लिए अखाड़े से निष्कासित करने का निर्णय लिया। महासभा ने कहा कि किसी भी नाबालिग को संन्यास की दीक्षा देना अखाड़े के नियमों का उल्लंघन है।
जूना अखाड़े के प्रवक्ता महंत नारायण गिरी ने इस मामले को लेकर एक वीडियो जारी किया। वीडियो में उन्होंने बताया कि महंत कौशल गिरि ने 2 दिन पहले आगरा की रहने वाली 13 साल की राखी सिंह को संन्यास की दीक्षा दी थी। महासभा ने यह भी स्पष्ट किया कि इस निर्णय का उद्देश्य अखाड़े की परंपराओं और धर्म के नियमों का पालन करना है।
क्यों नहीं दी जा सकती नाबालिग को दीक्षा?
अखाड़े के नियमों के अनुसार, नाबालिगों को संन्यास की दीक्षा देना मना है। यह कदम समाज में गलत संदेश दे सकता है और बालकों के अधिकारों के खिलाफ भी हो सकता है। बच्चों को अपने बचपन का पूरा हक और शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, और ऐसे में उन्हें किसी धार्मिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाना उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है।
महंत कौशल गिरि के खिलाफ यह कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि उन्होंने इस नियम का उल्लंघन किया था। महासभा ने यह फैसला लिया कि महंत को 7 साल के लिए निष्कासित किया जाएगा, ताकि इस तरह की घटनाओं को भविष्य में रोका जा सके।
समाज में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ
इस मामले पर समाज में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ लोग महंत कौशल गिरि के फैसले को एक सकारात्मक कदम मानते हैं, क्योंकि उन्होंने एक लड़की को संन्यास की दीक्षा देने के लिए उसका खुद का निर्णय लिया। वहीं, कई लोग इसे बाल अधिकारों और अखाड़े की परंपराओं का उल्लंघन मानते हैं और इस पर कड़ी आलोचना करते हैं।
इस घटना ने महाकुंभ की तैयारियों के बीच एक नया विवाद खड़ा कर दिया है और इसके बाद अखाड़े से निष्कासन की कार्रवाई ने कई सवाल उठाए हैं।
महाकुंभ के आयोजन से पहले इस तरह के विवादों का उठना आयोजकों के लिए एक नई चुनौती है। हालांकि, अखाड़े ने अपनी परंपराओं का पालन करते हुए कार्रवाई की है, लेकिन इस घटना से यह साबित हो गया है कि धर्म और समाज में कई बार परंपराओं और नए विचारों के बीच टकराव हो जाता है। आने वाले समय में ऐसी घटनाओं पर अधिक विचार-विमर्श और निर्णय की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस तरह के मुद्दों से बचा जा सके।