दीपक शर्मा
मैनपुरी। मैनपुरी में शीशम की लकड़ी पर पीतल के तार और चांदी के तार से उकेरी गई कलाकृतियां प्रदेश में ही नहीं विश्व भर में अपनी एक अलग पहचान छोड़ चुकी है। लेकिन बाजार की कसौटी के लिए आज भी तरस रही है। मैनपुरी की तारकशी 5 साल पहले तक खुद की पहचान को अकुलाई थी। हस्तशिल्पी हर मंच पर छेनी हथौड़ी से निर्मित हस्तशिल्प कला को उसका स्थान दिलाने के लिए प्रयास में लगे थे। लेकिन कला को न तो ठोर मिल पा रहा था ना ही ठिकाना। यूपी में सत्ता बदलाव के बाद 2018 में कला को कद्रदान मिले तो पहचान भी मिल गई। हालांकि इसके बाद भी अब तक कला और कारीगरों को हुए मुकाम नहीं मिला जिसकी उम्मीद लगाई गई थी।
कभी तपोभूमि के नाम से पहचानी जाती थी मैनपुरी
मैनपुरी जनपद ऋषि मुनियों की तपो भूमि के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाले क्रांतिकारी महाराजा तेज सिंह की नगरी भी कहीं जाती है। मैनपुरी जनपद की प्रदेश ही नहीं देश में एक अलग पहचान है। मैनपुरी की पहचान से जुड़ी तारकशी का कोई इतिहास तो नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि राजस्थान से आए कुछ परिवारों ने इसे यहां 300 साल पहले स्थापित किया था। नक्काशी और सुंदरता के मिलने वाली यह कला उस दौर में खूब खिलखिलाई इसके बाद कला को अपनाने वाले दूर होते गए।
तारकशी पहचान कायम रखने को तरस गई
प्रदेश में 5 साल पहले भाजपा की सरकार और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो तारकशी को एक जनपद एक उत्पाद में शामिल किया गया। यह ऐसी कला है जो प्रदेश में कहीं नहीं दिखाई देती है. अगस्त 2018 में तत्कालीन उपायुक्त उद्योग सुधीर कुमार ने शासन के पास ओडीओपी मैं चयन को भेजा तो प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ को यह कला पसंद आई। जिसके बाद इसका ओडीओपी में चयन कर लिया गया। वैसे तो नगर के मोहल्ला देवपुरा में जन्मे हस्तशिल्प और तारकशी के महान कारीगर विनोद कुमार शाक्य पहचान के मोहताज नहीं है। राष्ट्रपति पुरस्कार से भी इन्हें नवाजा जा चुका है। विदेशों में भी इनकी कलाकृतियां मैनपुरी की एक अलग पहचान और छाप छोड़ती है।
पीतल और चांदी के तार से मिलता आकार
मैनपुरी। शुरुआती दौर में शीशम की लकड़ी पर इस कला को पहचान देने का काम होता था। शीशम लकड़ी मिलने में कठिनाई से कारीगरों ने इसके विकल्प तलाशे। अब ईसागोन बबूल और अन्य लकड़ी पर तारकशी को तैयार किया जाने लगा है। लकड़ी पर उकेरी आकृति में पीतल, सिल्वर के पतले तार छैनी और हथौड़ी की मदद से भरे जाते हैं। काम शुरू करने से पहले लकड़ी को चमकाया जाता है।
पहचान की थी तड़प
मैनपुरी। तारकशी को शुरू से ही केवल शहर के देवपुरा में ही खिलखिलाने का मौका मिल रहा था। शिल्प गुरु और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित रामस्वरूप शाक्य और उनके स्वजन के अलावा चंद अन्य इस कला की पहचान कायम रखने में लगे हुए थे। देवपुरा में छोटी हथौड़ी ओंर छैनी की आवाज नागरिकों को उत्सुक तो करती थी। लेकिन कद्रदान और सरकार का ध्यान नहीं खींच पा रही थी। कुछ ऐसी वजह थी जिसके कारण बाजार में इसकी कद्र नहीं थी।
आर्थिक स्तर में नहीं आया बदलाव
ओडीओपी में चयनित होने से पहले तक तारकशी को जिंदा रखने वाले हस्तशिल्पियो की आर्थिक स्तर अच्छा भी नहीं था। साल में कुछ उत्पाद बिकने और युवाओं को प्रशिक्षण देने के बदले में अर्जित धन से ही इन हस्तशिल्पियों के परिवार की गाड़ी जैसे तैसे चलती थी। 5 साल पहले तक इनको बमुश्किल साठ हजार से एक लाख तक की कमाई हो पाती थी। अब भी कई हस्तशिल्पियो तारकशी के अलावा अन्य रोजगार पर काम करते हैं।
उपहार के लिए किया जा रहा पसंद
लकड़ी पर हाथ से तैयार की गई डिजाइन को उपहार के लिए पसंद किया जाता है। राजनेताओं और अधिकारियों को तैयार कृति उपहार के लिए भट्ट की जाती रही है। अब मेलों में स्टाल सजने से विदेशी भी इसे खरीदने लगे हैं। हस्तशिल्पी मांग आने पर ज्यादातर तारकशी उत्पाद तैयार करते हैं।
क्या बोले उपायुक्त उद्योग
उपायुक्त उद्योग मोहम्मद सऊद मैनपुरी की यह तारकशी कला पूरा हस्तशिल्प कला है। मैनपुरी की पहचान से जुड़ी यह कला उपेक्षित थी। ओडीओपी से इसका पुनर्जन्म हुआ है। अब जिले में यह कला फैलने लगी है। हस्तशिल्पी को अब यह कला विशेष मददगार भी बन रही है। क्योंकि इस कला को प्रदेश सरकार ने एक जिला एक उद्योग के नाम से जुड़ा है संभावना व्यापक होने लगी है।
क्या बोले राष्ट्रपति से सम्मानित हस्त शिल्पी,विनोद कुमार शाक्य
मैनपुरी । विनोद कुमार शाक्य सत्य आपके सामने को जानकारी देते हुए बताया ओडीओपी में चयनित होने से पहले तक तारकासी पहचान को तरस रही थी। प्रदेश सरकार द्वारा एक जिला एक उद्योग बेचैन होने के कारण अब इसका वर्तमान और भविष्य सुरक्षित दिखने लगा है। सरकार प्रशिक्षण आदि में मदद मिल रही है। लेकिन तारकशी जैसी हस्तशिल्प सरकार से बाजार उपलब्ध कराने की उम्मीद शेष है।