BSP Rally In Lucknow: लाखों का हुजूम, हाथी वाले पोस्टर्स… क्या मायावती वापस ला पाएंगी खोया जनाधार?

Dharmender Singh Malik
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लखनऊ, उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी खोई हुई पकड़ को मजबूत करने के लिए बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सुप्रीमो मायावती एक बार फिर सक्रिय हो गई हैं। कांशीराम की पुण्यतिथि के अवसर पर लखनऊ में आयोजित होने वाली गुरुवार की रैली को लेकर पार्टी ने पांच लाख से अधिक कार्यकर्ता और समर्थक जुटने का दावा किया है। लखनऊ के कांशीराम स्मारक मैदान में होने वाली यह रैली बीएसपी के लिए मात्र एक आयोजन नहीं, बल्कि शक्ति प्रदर्शन और राजनीतिक पुनर्जन्म की कोशिश है।

नीले-सफेद मंच से वापसी की उम्मीद

लंबे समय से राजनीतिक हाशिए पर चल रही बीएसपी इस रैली के जरिए अपनी वापसी की जोरदार कोशिश कर रही है। पूरा शहर नीले झंडों और हाथी वाले पोस्टर्स से पटा हुआ है। रैली स्थल— कांशीराम स्मारक मैदान— को पार्टी की पहचान, नीले और सफेद पर्दों से भव्यता से सजाया गया है। यह सजावट और विशाल हुजूम दलित और बहुजन समाज को एकजुटता का संदेश देने का प्रयास है।

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क्या खोया जनाधार बसपा को वापस मिलेगा?

बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में चार बार सत्ता में रह चुकी है, जिसमें 2007 में उसे पूर्ण बहुमत भी मिला था। हालांकि, पिछले कुछ चुनावों से पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया है।

इन निराशाजनक आंकड़ों के बाद यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या यह रैली पार्टी को उसका खोया जनाधार वापस दिला पाएगी।

चंद्रशेखर आजाद: बीएसपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती

बीएसपी के कोर वोट बैंक, खासकर दलित समुदाय में, अब चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने बड़ी चुनौती पेश की है। बिजनौर की नगीना सीट से जीतने के बाद चंद्रशेखर ने संविधान और दलित अधिकारों के मुद्दों पर जो सक्रियता दिखाई है, उसने बीएसपी की जमीनी पकड़ को कमजोर किया है।

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इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए, मायावती ने पार्टी में आकाश आनंद को फिर से आगे करके युवा कोर वोटर्स को एक नया और युवा नेतृत्व देने की कोशिश की है।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

बीएसपी कार्यकर्ताओं का दृढ़ विश्वास है कि यह रैली 2027 के विधानसभा चुनाव की मजबूत नींव रखेगी।

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सिर्फ विशाल भीड़ जुटा लेने से ही जनाधार नहीं लौटता। वापसी के लिए संगठित रणनीति, स्थायी और विश्वसनीय नेतृत्व और जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ निरंतर जुड़ाव अत्यंत आवश्यक है। बीएसपी का ग्राफ गिरने के पीछे गठबंधन की राजनीति में अस्थिरता और कार्यकर्ताओं से दूरी जैसे कई कारण रहे हैं।

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लखनऊ की यह रैली बीएसपी के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। लाखों का हुजूम एक मजबूत संदेश तो दे रहा है, लेकिन असली परीक्षा तब होगी जब यह भीड़ वोट में तब्दील होगी और पार्टी का खोया जनाधार वास्तव में वापस लौटेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती की नई रणनीति और आकाश आनंद का युवा चेहरा बीएसपी के राजनीतिक भविष्य को कैसे प्रभावित करता है।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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