आगरा: जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रथम ने आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को एक महत्वपूर्ण फैसले में वादी को उनकी जलकर नष्ट हुई मर्सडीज बेंज कार की बीमित राशि के रूप में 31,49,399 रुपये चुकाने का आदेश दिया है। आयोग के अध्यक्ष सर्वेश कुमार ने कंपनी को मानसिक कष्ट और वाद व्यय के रूप में अतिरिक्त एक लाख दस हजार रुपये भी वादी को देने का निर्देश दिया है।
यह मामला मैसर्स जी डायमंड स्टील स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंधक संजय कुमार अग्रवाल पुत्र कांति प्रसाद अग्रवाल, निवासी कमला नगर द्वारा आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, संजय प्लेस और अन्य के खिलाफ जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रथम में दायर मुकदमे से संबंधित है।
वादी के अनुसार, उन्होंने अपनी मर्सडीज कार का बीमा विपक्षी आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से 78,108 रुपये का प्रीमियम देकर कराया था। बीमा पॉलिसी 14 नवंबर 2021 से 13 नवंबर 2022 तक वैध थी।
घटनाक्रम के अनुसार, 26 जून 2022 को वादी के पुत्र अक्षत अग्रवाल अपनी सिंगना स्थित फैक्ट्री से रात 8 बजे घर लौट रहे थे। रास्ते में एसी से कुछ जलने की दुर्गंध आने पर उन्होंने कार को सड़क किनारे खड़ी कर बोनट खोलकर खराबी देखने का प्रयास किया। जैसे ही उन्होंने बोनट खोला, अचानक स्पार्क होने से कार में आग लग गई। वादी के पुत्र द्वारा पुलिस को सूचना देने के लगभग चालीस मिनट बाद दमकल की गाड़ी पहुंची, लेकिन तब तक कार पूरी तरह से जलकर खाक हो चुकी थी।
वादी ने तुरंत इंश्योरेंस कंपनी को लिखित रूप से घटना की सूचना दी, जिसके बाद कंपनी की ओर से सर्वेयर सुधांशु गुलाटी ने कार का निरीक्षण किया। वादी द्वारा सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद इंश्योरेंस कंपनी में क्लेम प्रस्तुत किया गया। हालांकि, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने 4 जनवरी 2023 को वादी का क्लेम खारिज कर दिया, जिसके बाद वादी ने उपभोक्ता आयोग में मुकदमा दायर किया था।
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रथम के अध्यक्ष सर्वेश कुमार ने मामले की सुनवाई के बाद वादी के पक्ष में फैसला सुनाया। आयोग ने आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को आदेश दिया कि वे 45 दिनों के भीतर वादी को बीमित राशि 31,49,399 रुपये का भुगतान करें। इसके अतिरिक्त, आयोग ने कंपनी को वादी को मानसिक कष्ट और वाद व्यय के रूप में एक लाख दस हजार रुपये भी देने का आदेश दिया।
यह फैसला उपभोक्ता अधिकारों की जीत के रूप में देखा जा रहा है, जहां आयोग ने इंश्योरेंस कंपनी द्वारा अनुचित रूप से क्लेम खारिज करने पर सख्त रुख अपनाया है।