दयालबाग मानद विश्वविद्यालय: शिक्षा क्षेत्र में योगदान और सुधार की आवश्यकता

Dharmender Singh Malik
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दयालबाग मानद विश्वविद्यालय: शिक्षा क्षेत्र में योगदान और सुधार की आवश्यकता
दयालबाग मानद विश्वविद्यालय (Deemed University) ने शिक्षा क्षेत्र में एक गौरवमयी परंपरा बनाई है और विश्वविद्यालय ग्रांट कमीशन (UGC) के निर्देशों का पालन गंभीरता से किया है। इस विश्वविद्यालय ने अपने कार्यों और नीतियों के माध्यम से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में योगदान किया है। हालांकि, कुछ मुद्दों पर विचार किए बिना, विश्वविद्यालय ने अपनी नीतियों और कार्यप्रणालियों को खुद के तौर-तरीकों के साथ लागू किया है, जो अब सिविल सोसायटी ऑफ आगरा द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों के कारण सवालों के घेरे में हैं।

कन्ट्रास्टिंग पॉलिसी एंड प्रैक्टिसेज़

केंद्र सरकार द्वारा जारी नई शिक्षा नीति के तहत अपेक्षित था कि दयालबाग विश्वविद्यालय इस नीति को प्रभावी बनाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाए। लेकिन, विश्वविद्यालय द्वारा अपनाई जा रही कुछ नीतियां और प्रैक्टिसेज़ से ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय ने अपने प्रशासनिक तरीके और कार्यप्रणालियां विश्वविद्यालय के लिए निर्धारित नीतियों से अलग रखी हैं।

सिविल सोसायटी ऑफ आगरा ने इन मुद्दों को उठाया है, और अब यह अपेक्षाएं जताई जा रही हैं कि निदेशक महोदय (उच्च शिक्षा) इन मुद्दों को गंभीरता से लें और इस पर औपचारिक रूप से प्रतिक्रिया दें।

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अधिकारियों की नियुक्ति और कार्यप्रणाली पर सवाल

  • नियमानुसार अधिकारियों की नियुक्ति में गड़बड़ी: दयालबाग विश्वविद्यालय में प्रशासनिक पदों की नियुक्ति में कई विसंगतियां पाई जा रही हैं। यूजीसी की नई नियमावली के अनुसार विश्वविद्यालय में प्रेसिडेंट का पद अलग होना चाहिए, लेकिन इस पद पर कोई नहीं है। कुलसचिव और कोषाध्यक्ष की अधिकतम आयु सीमा 62 वर्ष निर्धारित की गई है, लेकिन विश्वविद्यालय में 62 और 77 वर्ष के अधिकारियों को अवैतनिक रूप से रखा गया है। यह साफ तौर पर नियमों का उल्लंघन है।
  • निदेशक की नियुक्ति में असमानता: 13 अगस्त 2023 को विश्वविद्यालय के निदेशक का कार्यकाल समाप्त हुआ था, और इसके बाद नियमों के मुताबिक नया निदेशक नियुक्त करना था। लेकिन, यहां सरकार द्वारा नया निदेशक नियुक्त नहीं किया गया, बल्कि एक जूनियर प्रोफेसर को निदेशक बना दिया गया, जो नियमों के विपरीत है।

नियमों का उल्लंघन और उसके परिणाम

  • नॉन डिग्री और ऑफ-कैंपस कोर्स: यूजीसी के दिशा-निर्देशों के अनुसार, डीम्ड विश्वविद्यालय नॉन डिग्री और ऑफ-कैंपस कोर्स नहीं चला सकते, लेकिन दयालबाग विश्वविद्यालय इस नियम का उल्लंघन कर रहा है। यह निश्चित रूप से उच्च शिक्षा के मानकों का उल्लंघन है, और इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
  • सौ करोड़ का अनुदान: भारत सरकार की उदार शिक्षा नीति के तहत दयालबाग विश्वविद्यालय को 100 करोड़ का अनुदान प्राप्त हुआ है, जिसे सही तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सिविल सोसायटी ऑफ आगरा की यह अपेक्षा है कि इस राशि को दो सौ करोड़ किया जाए, लेकिन इस अनुदान का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। इसके लिए एक अधिकार संपन्न अधिकारी की नियुक्ति की आवश्यकता है जो विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ काम कर सके।
  • अधिकारियों की नियुक्ति में अनियमितता: वर्तमान में विश्वविद्यालय में कोई भी सरकारी अधिकारी प्रशासन से संबद्ध नहीं है, और महत्वपूर्ण पद जैसे कुलसचिव और कोषाध्यक्ष अवैतनिक रूप से नियुक्त किए गए हैं। यह स्थिति विश्वविद्यालय के प्रशासन में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की कमी को दर्शाती है।
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दयालबाग विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति में कई अनियमितताएँ और विसंगतियां हैं, जिनका निदान तत्काल किया जाना चाहिए। सिविल सोसायटी ऑफ आगरा की अपेक्षाएं उचित हैं, और निदेशक (उच्च शिक्षा) से अपील की जाती है कि वे इन मुद्दों को गंभीरता से लेकर उचित कदम उठाएं। इसके साथ ही, विश्वविद्यालय को अपनी प्रशासनिक प्रक्रिया और नीतियों में सुधार करने की आवश्यकता है ताकि यह यूजीसी की नई नियमावली और सरकार की शिक्षा नीतियों के अनुरूप कार्य करे।

अगर इन मुद्दों का समाधान शीघ्र नहीं किया जाता, तो यह दयालबाग मानद विश्वविद्यालय की छवि को नुकसान पहुँचा सकता है और छात्रों, शिक्षकों, और कर्मचारियों के लिए अनिश्चितता का कारण बन सकता है।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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