आगरा। अमृता विद्या – एजुकेशन फॉर इम्मोर्टालिटी और छांव फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ‘जीवन में गीता की भूमिका’ पर एक विचारशील चर्चा का आयोजन किया गया। यह आयोजन ‘शीरोज हैंगआउट’ में हुआ, जिसमें एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के महाप्रबंधक (इंजीनियरिंग) श्री अनूप चंद्र श्रीवास्तव ने मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की। इस कार्यक्रम में उन्होंने श्रीमद भगवत गीता को केवल एक धार्मिक ग्रंथ के रूप में नहीं बल्कि जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाली ऊर्जा और कर्त्तव्य बोध करवाने वाली पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया।
श्रीमद भगवत गीता: जीवन का मार्गदर्शक ग्रंथ
श्री अनूप चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि ‘श्रीमद भगवत गीता’ भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जो केवल धार्मिक या अध्यात्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि जीवन में कर्त्तव्य निभाने के लिए प्रेरित करने वाले दर्शन के रूप में भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने महाभारत के संदर्भ में गीता के संदेशों की व्याख्या की और बताया कि कैसे अर्जुन को कर्त्तव्य बोध कराने के लिए श्री कृष्ण ने गीता के उपदेश दिए थे। उनका मानना है कि यह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि आज भी हम सभी के लिए प्रासंगिक हैं, जिनसे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
गीता के शिक्षाएं और उनका सामाजिक महत्व
श्रीवास्तव ने आगे कहा कि गीता के उपदेश आज भी हमारे जीवन में अत्यंत प्रासंगिक हैं, खासकर जब हम जीवन की चुनौतियों का सामना कर रहे होते हैं। गीता की शिक्षाएं व्यक्ति को संघर्षों और विषमताओं का सामना करने के लिए मानसिक और आंतरिक शक्ति प्रदान करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गीता का संदेश सिर्फ आत्मा की मुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में कर्त्तव्य पालन की प्रेरणा देती है, जो समाज और परिवार के प्रति हमारी जिम्मेदारी को निभाने के लिए जरूरी है।
व्यक्तिगत जीवन में गीता के दर्शन का प्रभाव
श्री श्रीवास्तव ने यह भी साझा किया कि वे व्यक्तिगत जीवन में गीता के दर्शन को अपनाते हैं और इसे केवल धर्म से जुड़ा नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन के रूप में मानते हैं। उन्होंने बताया कि वे गीता पर्याय अभियान के तहत सत्संग और संगोष्ठियां आयोजित करते हैं, जिसमें गीता की शिक्षाओं को आम लोगों तक पहुँचाया जाता है। श्रीवास्तव के अनुसार, गीता अहंकार को नियंत्रित करती है और यह जीवन में खुशहाली लाने में सहायक है।
प्रबंधन के दृष्टिकोण से गीता
उनका मानना है कि गीता के उपदेश न केवल धार्मिक या मानसिक उन्नति के लिए हैं, बल्कि यह प्रबंधन के दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। कई प्रबंधन स्कूलों में गीता को पाठ्यक्रम के रूप में शामिल किया गया है। उनका कहना है कि गीता की शिक्षाओं को सही संदर्भ में समझकर हम न केवल व्यक्तिगत जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि पेशेवर जीवन में भी इसे अपनाकर अपने कर्त्तव्यों को बखूबी निभा सकते हैं।
सहिष्णुता और सहअस्तित्व की आवश्यकता
श्री श्रीवास्तव ने अपनी बात को समाप्त करते हुए कहा कि गीता की शिक्षाएं सहिष्णुता और सहअस्तित्व के सिद्धांतों को प्रोत्साहित करती हैं। उनका मानना है कि गीता के संदेशों को समझकर और उन्हें जीवन में अपनाकर हम समाज में शांति और सहयोग का माहौल बना सकते हैं।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख व्यक्ति
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में सिविल सोसायटी के जर्नल सेक्रेटरी अनिल शर्मा और छांव फाउंडेशन के आशीष शुक्ला ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि श्री श्रीवास्तव का अभियान समाज में कर्त्तव्य पालन की दिशा में एक आदर्श है, जो देश और समाज की सेवा में योगदान करने का मार्गदर्शन करता है।
कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने श्री श्रीवास्तव से कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे, जिनके जवाब उन्होंने दिए। इस कार्यक्रम में नवाबउद्दीन, एम यू कुरैशी, सईद शाहीन हाश्मी, अमल शर्मा, डी के तायल सहित कई प्रमुख व्यक्ति उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन अमृता विद्या- एजुकेशन फॉर इम्मोर्टालिटी के सचिव अनिल शर्मा ने किया, जबकि छांव फाउंडेशन के राम भरत उपाध्याय ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
श्रीमद भगवत गीता: एक अमर धरोहर
श्रीमद भगवत गीता महाभारत के भीष्म पर्व के 25वें अध्याय से शुरू होती है, जिसमें श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के दौरान जीवन के गहरे सिद्धांतों और कर्त्तव्य के बारे में बताया। गीता में तीन प्रमुख योगों – कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का उल्लेख है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में निरंतर सफलता और आत्म-मुक्ति प्राप्त करने के उपाय प्रदान करते हैं। यह ग्रंथ न केवल भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह पूरी दुनिया में आत्मज्ञान और जीवन के मार्गदर्शन के रूप में स्वीकार किया गया है।
‘श्रीमद भगवत गीता’ केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह एक जीवन का मार्गदर्शक है जो हर व्यक्ति को अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक करता है। श्री अनूप चंद्र श्रीवास्तव द्वारा गीता की शिक्षाओं पर चर्चा और उनके द्वारा किए गए प्रयास निश्चित रूप से समाज को जागरूक करने और सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होंगे।