भाजपा और रालोद का गठबंधन हुआ तो आरएलडी का कद बढ़ना तय है। वर्ष 2009 में भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर पहली बार जयंत लोकसभा पहुंचे थे। भाजपा की सरकार न बनने पर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 2014 के चुनावों में रालोद को मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी और उसे हार मिली।
भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन की खबरों ने राजनैतिक में आग लगा दी है। चर्चा है कि गठबंधन हुआ और मथुरा लोकसभा सीट रालोद के हिस्से में गई तो फिर 2009 की तरह जयंत चौधरी मथुरा से चुनाव लड़ सकते हैं।
राष्ट्रीय लोकदल को न सिर्फ मथुरा बल्कि अन्य जाट बहुल सीटों पर भी फायदा होगा। इधर, समाजवादी पार्टी में इसी बात को लेकर खलबली है। अभी सपा-रालोद गठबंधन के तहत मथुरा की सीट रालोद के खाते में है। 19 लाख से अधिक मतदाताओं वाली इस सीट को साढ़े तीन लाख के करीब जाट मतदाता होने के कारण मिनी छपरौली भी कहा जाता है।
रालोद ने जयंत चौधरी को भाजपा के साथ गठबंधन से 2009 में इसी सीट से उतरा था। मथुरा वासियों ने उन्हें अशीर्वाद दे संसद में पहुंचाया, पर भाजपा की सरकार न बनने के कारण भाजपा से नमस्ते कर कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया था। वर्ष 2014 में भाजपा ने मथुरा से हेमा मालिनी को टिकिट दी । हेमा मालिनी के सामने चुनाव लड़ रहे जयंत चौधरी को 3,30,743 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 में रालोद ने कुंवर नरेंद्र सिंह को गठबंधन प्रत्याशी घोषित किया। यह पहला मौका था जब चौधरी परिवार ने जाट बहुल मथुरा संसदीय क्षेत्र से किसी गैर जाट पर दांव खेल। भाजपा से हेमा मालिनी ने उन्हें भी 2,93.471 वोटों से हरा जीत हासिल की।
भाजपा-रालोद का गठबंधन में हेमा मालिनी का क्या होगा?
भाजपा-रालोद का गठबंधन हुआ और मथुरा लोकसभा सीट रालोद के खाते में गई तो वर्तमान सांसद हेमा मालिनी का क्या होगा, इसे लेकर लोगों में चर्चा कि हेमा को चुनाव लड़ाया जाएगा या नहीं या उन्हें कोई अन्य जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
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भाजपा-रालोद गठबंधन से क्या बदलेगा?
- रालोद को फायदा: 2009 में भाजपा के साथ गठबंधन में जयंत चौधरी जीते थे। गठबंधन हुआ तो रालोद को खोई जमीन वापस मिल सकती है।
- हेमा मालिनी का भविष्य: गठबंधन हुआ तो हेमा मालिनी का चुनाव लड़ना मुश्किल होगा। उन्हें अन्य जिम्मेदारी मिल सकती है।
- सपा खेमे में खलबली: सपा-रालोद गठबंधन के तहत मथुरा सीट रालोद के पास थी। गठबंधन टूटने से सपा को नुकसान हो सकता है।
जातीय समीकरण:
- मतदाता: 19.23 लाख
- जाति:
- जाट: 3.5 लाख
- ब्राह्मण-ठाकुर: 3 लाख
- एससी: 1.5 लाख
- वैश्य: 1.5 लाख
- मुस्लिम: 1.25 लाख
- यादव: 70 हजार
- अन्य: 4 लाख
चुनावी इतिहास:
- भाजपा: 6 बार जीत
- कांग्रेस: 4 बार जीत
- सपा-बसपा: कभी नहीं जीते
विजेता (1957-2019):
- 1957: राजा महेंद्र प्रताप सिंह (निर्दलीय)
- 1962: चौधरी दिगंबर सिंह (कांग्रेस)
- 1967: जीएसएसएबी सिंह (निर्दलीय)
- 1971: चक्रेश्वर सिंह (कांग्रेस)
- 1977: मणीराम (बीएलडी)
- 1980: चौधरी दिगंबर सिंह (जेएनपी (एस))
- 1984: मानवेंद्र सिंह (कांग्रेस)
- 1989: मानवेंद्र सिंह (जनता दल)
- 1991: साक्षी महाराज (भाजपा)
- 1996: तेजवीर सिंह (भाजपा)
- 1998: तेजवीर सिंह (भाजपा)
- 1999: तेजवीर सिंह (भाजपा)
- 2004: मानवेंद्र सिंह (कांग्रेस)
- 2009: जयंत चौधरी (रालोद-भाजपा गठबंधन)
- 2014: हेमा मालिनी (भाजपा)
- 2019: हेमा मालिनी (भाजपा)