अयोध्या, उत्तर प्रदेश: लोक दायित्व सामाजिक संगठन के तत्वावधान में “रघुभूमि से तपोभूमि” नामक तीन दिवसीय यात्रा का भव्य शुभारंभ हुआ। यह यात्रा अयोध्या स्थित तुलसी छावनी से प्रातः 7:30 बजे भगवा ध्वज दिखाकर रवाना हुई।
यात्रा का शुभारंभ तुलसी छावनी से शोभा यात्रा के रूप में हुआ, जो राम की पैड़ी तक चलकर पूजन-अर्चना के साथ संपन्न हुई। इस अवसर पर तुलसी छावनी के महंत श्री जनार्दन दास जी महाराज, स्वामी दिलीप दास जी महाराज, अध्यक्ष -रघुवंश, संकल्प -सेवा द्रस्ट, और डॉ. विजयेन्द्र चतुर्वेदी (विभागाध्यक्ष, जनसंचार विभाग, राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय, अयोध्या) ने भगवा ध्वज दिखाकर इस तीन दिवसीय यात्रा को रवाना किया।
यात्रा का उद्देश्य और जिलों की सहभागिता
इस यात्रा में गोरखपुर, आजमगढ़, वाराणसी, मिर्जापुर, चंदौली, भदोही आदि जिलों के लोगों ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित की। गोरखपुर जिले से डॉ. अभिषेक पाण्डेय, अविनाश महेंद्र शाही, और समाजसेवी नीरज त्रिपाठी ने प्रतिनिधित्व किया।
लोक दायित्व संगठन का मुख्य उद्देश्य महर्षि विश्वामित्र के उन पदचिन्हों पर चलना है, जब उन्होंने समाज में राक्षसों के आतंक को समाप्त करने के लिए अयोध्या के राजा दशरथ से उनके पुत्र राम और लक्ष्मण को अपने साथ लिया था। भगवान राम और लक्ष्मण ने जिन-जिन रास्तों से होते हुए बक्सर में ताड़का वध, सुबाहु आदि राक्षसों का वध किया था, उन स्थानों पर जाकर पूजन-अर्चना करना, उन ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित करना, विलुप्त हो चुकी नदियों को पुनर्जीवित करना, और त्रेता युगीन वृक्षों का वृक्षारोपण करना इस यात्रा के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल है।
पहला पड़ाव: महाराजा दशरथ की समाधि स्थल पर पूजन
पहले दिन की यात्रा का प्रथम पड़ाव महाराजा दशरथ की समाधि स्थल पर रहा, जहां विधि-विधान से पूजन-कीर्तन किया गया। समाधि स्थल के मुख्य पुजारी ने इस स्थान की महत्ता बताते हुए कहा कि महाराज दशरथ के दर्शन के बाद जो भी शनि देव के विग्रह का दर्शन-पूजन करता है, चाहे सामने से ही क्यों न हो, शनि के दुष्प्रभाव उसके अनुकूल बन जाते हैं।
महाराजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ स्थल का अवलोकन
यात्रा के दूसरे दिन का महत्वपूर्ण पड़ाव उस स्थान पर रहा, जहां महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। माना जाता है कि इसी स्थान पर श्रृंगी ऋषि ने पुरोहित का कार्य किया था। यहां पर महाराजा दशरथ और माता कौशल्या की पुत्री शांता सिन्हा का भी स्मरण किया गया, जो युद्ध कौशल में निपुण, वीर और साहसिक थीं। ऐसी मान्यता है कि शांता ने ही राज्य के उत्तराधिकारी और पिता को पुत्र की प्राप्ति के लिए राजपाठ त्याग कर श्रृंगी ऋषि की सेवा की थी, उन्हें प्रसन्न कर पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए तैयार किया था और बाद में उनसे विवाह किया। शांता और श्रृंगी ऋषि का आश्रम शेखाघाट, अयोध्या में स्थित है। यह भी माना जाता है कि भगवान राम अपने विवाह के बाद अयोध्या वापस आकर सर्वप्रथम चारों भाई अपनी पत्नियों सहित शांता से मिलने और आशीर्वाद लेने आए थे।
राजा मोरध्वज के किले और बाबा भैरवनाथ मंदिर तक यात्रा
पुत्रेष्टि यज्ञ स्थल के बाद यात्रा बंसखारी, राम नगर, सरयू नगर होते हुए चाण्डीपुर स्थित राजा मोरध्वज के किले तक पहुंची। यहां वही स्थान है जहां राजा मोरध्वज अपनी रानी के साथ अपने पुत्र पर आरा चलाकर शरणागत की परीक्षा में सफल हुए थे। यह स्थल आज भी किले के भग्नावशेषों के रूप में मौजूद है, और राजा मोरध्वज को भगवान राम के बहुत बड़े भक्त के रूप में जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि इस किले से अयोध्या तक एक सुरंग थी, जिसके रास्ते राजा मोरध्वज पूजा करने अयोध्या आया करते थे।
इसके पश्चात, यात्रा कम्हरियां, गढवल, राजे सुल्तानपुर होते हुए बाबा भैरवनाथ मंदिर, महराजगंज पहुंची। यह वह पवित्र स्थान है जहां रुककर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण ने ब्रह्मर्षि विश्वामित्र जी के साथ पूजन-अर्चन किया था, जो इस स्थान की प्राचीनता को दर्शाता है। इसी मंदिर के बगल में कभी छोटी सरयू नदी बहा करती थी, जो वर्तमान समय में विलुप्त हो चुकी है। लोक दायित्व संगठन ने इस नदी को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजा जा सके।