खेरागढ़ (आगरा): आगरा जिले के खेरागढ़ थाना क्षेत्र से एक बेहद गंभीर और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक किशोरी के अपहरण और उसके साथ हुए दुष्कर्म के मामले में पॉक्सो एक्ट की विशेष अदालत ने खेरागढ़ थाने के थानेदार और दो दरोगाओं सहित कुछ अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का सख्त आदेश दिया था।
अदालत के स्पष्ट आदेश के बाद आखिरकार खेरागढ़ थाने में मुकदमा तो दर्ज कर लिया गया है, लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस गंभीर मुकदमे में नामजद अभियुक्त होने के बावजूद थानेदार अभी भी अपने पद पर बना हुआ है।
उठ रहे हैं गंभीर सवाल
अदालत के स्पष्ट आदेश के बाद जब प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है, तो फिर पुलिस विभाग किस नियम और अधिकार के तहत आरोपी थानेदार को उसी महत्वपूर्ण पद पर बनाए हुए है? यह सीधा-सीधा न्यायपालिका के आदेश की अवहेलना क्यों नहीं माना जा रहा है? क्या यह पीड़िता और उसके traumatized परिवार के लिए एक और गहरा मानसिक आघात नहीं है?
पुलिस विभाग की चुप्पी पर भड़का जन आक्रोश
इस घटना पर स्थानीय जनता और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है। उनका कहना है कि यदि किसी आम नागरिक के खिलाफ ऐसा गंभीर मुकदमा दर्ज होता, तो तत्काल उसकी गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाती, लेकिन चूंकि मामला वर्दीधारियों से जुड़ा है, इसलिए उन्हें बचाने का प्रयास किया जा रहा है। यह ‘खाकी का संरक्षण’ क्यों जारी है?
पॉक्सो कोर्ट ने यह मुकदमा किसी भी तरह की अफवाह या सुनी-सुनाई बातों के आधार पर दर्ज करने का आदेश नहीं दिया था, बल्कि उपलब्ध ठोस साक्ष्यों और पीड़ित पक्ष की गवाही के बाद ही यह निर्णय लिया गया था। अब यह देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि स्थानीय प्रशासन कब इस मामले पर संज्ञान लेता है और क्या आखिरकार पीड़िता को न्याय मिल पाएगा — या फिर यह मामला भी अन्य विभागीय फाइलों की धूल में दबकर रह जाएगा? इस घटना ने एक बार फिर पुलिस विभाग की कार्यशैली और न्याय के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
